
कोरोना के कारण नहीं होगा मथुरा में चातुर्मास वास
मथुरा : परंपरा के अनुसार चातुर्मास में देश के सभी तीर्थों के ब्रज में रहने के कारण देश के कोने कोने से संत और गृहस्थ आकर ब्रजमंडल में चार महीने वास करते हैं किंतु कोरोना ने इस वर्ष इस परंपरा में ग्रहण लगा दिया है। वर्तमान में गोवर्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य अधेाक्षजानन्द देव तीर्थ गोवर्धन में
मथुरा : परंपरा के अनुसार चातुर्मास में देश के सभी तीर्थों के ब्रज में रहने के कारण देश के कोने कोने से संत और गृहस्थ आकर ब्रजमंडल में चार महीने वास करते हैं किंतु कोरोना ने इस वर्ष इस परंपरा में ग्रहण लगा दिया है। वर्तमान में गोवर्धन पीठाधीश्वर शंकराचार्य अधेाक्षजानन्द देव तीर्थ गोवर्धन में चातुर्मास कर रहे हैं।उन्होंने अपना चातुर्मास देवशयनी एकादशी से ही शुरू कर दिया है। वैसे दो वर्ष पूर्व द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती ने वृन्दावन में चातुर्मास किया था।आचार्य जिनेन्द्र शास्त्री ने बताया कि सामान्यतया जैन सम्प्रदाय के कोई न कोई महान संत श्री जम्बूस्वामी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र चैरासी मथुरा में चातुर्मास किया करते थे किंतु इस वर्ष कोरोना वायरस के कारण वहां पर भी कोई संत चातुर्मास नही कर रहा है।
चातुर्मास के महत्व के बारे में बल्लभकुल सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य मदनमोहन मंदिर एवं मथुराधीश मंदिर के मुखिया आचार्य ब्रजेश ने बताया कि चातुर्मास का बड़ा महत्व है ।ग्रहस्थ चातुर्मास में अधिक से अधिक भगवत भक्ति करते हैं तो संत भगवत नाम की तपस्या कर आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत , उपवास रखकर ईश्वर की आराधना करते हैं। वैसे चातुर्मास के शुरू करने के बारे में कोई नियम नही है क्योंकि भगवत आराधना कभी भी की जा सकती है किंतु संतो का चातुर्मास गुरू पूर्णिमा से तथा ग्रहस्थों का देवशयनी एकादशी से प्रारंभ हो जाता है।
चातुर्मास में सभी तीर्थों के मथुरा में निवास करने के बारे आचार्य ब्रजेश ने बताया कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण तीर्थराज प्रयाग को तीर्थों का राजा बनाकर राधारानी के साथ निकुंज लीला में चले गए। लम्बे समय के बाद जब वे लौटे तो उन्होंने प्रयागराज से पूछा कि उन्हें कोई परेशानी तो नही हुई। इस पर प्रयागराज ने बताया कि उनका आदेश जहां सभी तीर्थों ने माना वहीं मथुरा तीर्थ ने नही माना। इस पर श्यामसुन्दर ने प्रयागराज से कहा कि ’’उन्हे तीर्थों का राजा बनाया गया था किंतु उन्हें अपने घर का राजा नही बनाया गया था। मथुरा तीर्थ मेंरा घर है।’’ यह सुनकर प्रयागराज ने अपनी भूल को स्वीकार करते हुए श्यामसुन्दर से दण्ड देने को कहा तो श्यामसुन्दर ने प्रयागराज से कहा कि भविष्य में वे सभी तीर्थो कों लेकर चातुर्मास में व्रज में ही निवास करेंगे। इसीलिए ब्रजमण्डल में चारोधाम, नैमिषारण्य, गंगोत्री, यमुनोत्री, गौरीकुंड अदि सभी तीर्थ निवास करते हैं और इसी कारण संत एवं ग्रहस्थ इस दौरान व्रज में रहते हैं। चैरासी कोस की परिक्रमा भी चातुर्मास में लगती है तो कार्तिक मास का कल्प भी चातुर्मास में ही होता है।
चातुर्मास असल में सन्यासियों द्वारा समाज को मार्गदर्शन करने का समय है। वे इस दौरान व्रत, नियम, पूजा, भजन एवं जप करके अपनें अन्दर आध्यात्मिक शक्ति का विस्तार करते हैं। आम आदमी इन चार महीनों में अगर केवल सत्य ही बोले तो भी उसे अपने अन्दर आध्यात्मिक प्रकाश नजर आएगा।
ब्रज में इस बार ब्रज के महान संत गुरूशरणानन्द महराज काष्र्णि आश्रम रमणरेती में चातुर्मास करेंगे। आश्रम के संत गोविन्दानन्द ने बताया कि चातुर्मास में महराज जी चैरासी कोस ब्रजमंण्डल से बाहर नही जाएंगे तथा चातुर्मास में उनकी आराधना का समय बहुत अधिक बढ़ जाता है।उदासीन आश्रम जयसिंहपुरा के महन्त हरिशरणानन्द महराज भी ब्रज में ही चातुर्मास करेंगे। वे भी ब्रज चैरासी कोस से बाहर नही जाएंगे तो ब्रज के सरल संत बलराम बाबा वृन्दावन में ही चातुर्मास करेंगे। उन्होंने बताया िक चातुर्मास के दौरान वे वृन्दावन से बाहर नही जाएंगे। इसी प्रकार उमाशक्ति पीठाधीश्वर संत रामदेवानन्द महराज भी वृन्दावन में ही चातुर्मास करेंगे।उनका कहना था कि असली चातुर्मास तो एक तीर्थ में ही रहकर किया जाता है इसीलिए वे इस दौरान वृन्दावन तीर्थ में रहेंगे। कोविद-19 के बावजूद देश के विभिन्न भागों से दर्जनों भक्त आकर व्रज के किसी तीर्थ में चातुर्मास कर रहे है यही कारण है कि व्रज का कोना कोना भक्ति रस से भर गया है।
वार्ता