
हिंदू तीर्थयात्रियों की आरामतलबी, लालच और सरकार की नपुंसकता का नतीजा है जोशीमठ त्रासदी
आप में से कुछ लोग हेडलाइन देखकर नाराज़ हो रहे होंगे, लेकिन ये कड़वी हकीकत है। आप किसी भी हिंदू तीर्थस्थल को देख लीजिए, हर जगह को बर्बाद कर दिया है। अब हिंदू तीर्थस्थलों में तीर्थ करने नहीं बल्कि टूरिज्म और पर्यटन के लिए जाते हैं। तीर्थस्थल जाने के लिए जो तपस्या चाहिए, जो आस्था, जो थोड़ा बहुत कष्ट सहने का जज्बा चाहिए, वो खत्म हो गया है। अब हिंदुओं को मंदिर तक कार का रास्ता चाहिए, जहां वो अपनी SUV या टैम्पो ट्रेवलर लेकर जा सकें।
थोड़ा भी पैदल ना चलना पड़े, रहने के लिए अच्छे होटल चाहिए, खाने के लिए छप्पन भोग चाहिए, अब हिंदू तीर्थस्थलों में पूजने नहीं बल्कि घूमने जाते हैं। इंस्टाग्राम रील बनाने मंदिरों में जाते हैं, ना तो खानपान तीर्थयात्रा वाला होता है, ना ही पहनावा तीर्थस्थल के अनुरूप। अब हिंदू तीर्थयात्रियों में पैसों की नहीं आस्था की कमी है। इसलिए पैसे कमाने के लिए तीर्थस्थलों के आसपास रहने वाले लोग बड़े-बड़े मकान बना रहे हैं। ताकि उन्हें गेस्ट हाउस के तौर पर तब्दील किया जा सके। कई-कई मंजिला होटल बन रहे हैं, पहाड़ खोदकर घर और होटल बनाने के लिए ज़मीन समतल की जा रही है। ना ड्रेनेज की व्यवस्था है...ना पानी की निकासी...कहीं तो जाएगा वो पानी...वो सारा पानी..तीर्थस्थल के आसपास की ज़मीन में जा रहा है और लैंड्स्लाइड की वजह बन रहा है। आखिर कोई तो वजह होती होगी कि ज्यादातर हिंदू तीर्थस्थल भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम क्षेत्रों में होते थे। भगवान भी या फिर आदि शंकाराचार्य और इन तीर्थों की स्थापना करने वाले दूसरे साधु-संत भी सोचते होंगे कि जो लोग तीर्थ यात्रा करने आए, कम से कम वो इतना कष्ट तो सहें कि भगवान के अस्तित्व पर उनका विश्वास मजबूत हो। तीर्थयात्रियों को लगे कि भगवान की कृपा से इतने दुर्गम तीर्थस्थल पर पहुंच सके, वरना यहां आना हमारे लिए बहुत मुश्किल था..लेकिन अब तो कोई भी मुंह उठाकर..अपनी गाड़ी लेकर तीर्थस्थल आ जा रहा है..सारी सांसरिक सुविधाओं को उपभोग कर रहा है... जैन समाज के लोगों को देखा था ना, किस तरह सम्मेद शिखर जी को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के सरकार के फैसले को पलट दिया।
मैंने जोशीमठ शहर और इसके आसपास बने होटल और घर देखे...मैं तो हैरान रह गया...एक भी खेत खाली नहीं दिख रहा था..इतने बड़े घर बना रखे हैं जैसे कि घर में ही कोई स्कूल खोलना हो...इसी तरह तीखे ढलान में भी कई मंजिला होटल खड़े कर दिए गए...जबकि हकीकत ये है कि जोशीमठ शहर हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियर जोन कहा जाता है..इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया.. इस मलबे से बने पहाड़ को मोरेन कहते हैं...साइंटिफिक टर्म में कहें तो ऐसी जगह को डिस-इक्विलिब्रियम कहा जाता है...जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ये ऐसी जगह होती है जहां जमीन स्थिर नहीं है और जिसका संतुलन नहीं बन पाया है...ज़मीन की इसी असंतुलन की वजह से लैंडस्लाइड होता है...जोशीमठ की इसी अस्थिरता की वजह से बार-बार इस शहर पर खतरे की बात होती रही और सरकार भी वक्त-वक्त पर यहां सर्वे कराती रही...1976 में गढ़वाल के उस वक्त के कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि जोशीमठ का इलाका प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र में आता है..जोशीमठ शहर पहाड़ से टूटकर आए बड़े टुकड़ों और मिट्टी के ढेर पर बसा है..इसीलिए ये इतना अस्थिर है..जोशीमठ की इसी इको सेंसटिव लोकेशन की वजह से कमेटी ने इस इलाके में ढलानों पर खुदाई या ब्लास्टिंग कर कोई बड़ा पत्थर ना हटाने की सिफारिश की थी क्योंकि ब्लास्ट से पूरे इलाके के दरकने का खतरा था..इतना ही नहीं कमेटी ने ये भी कहा था कि जोशीमठ के पांच किलोमीटर के दायरे में किसी तरह का कंस्ट्रक्शन मैटेरियल डंप न किया जाए...मिश्रा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ कहा था कि विकास के नाम पर जोशीमठ इलाके में मौजूद जंगलों को तबाह कर दिया गया है..पहाड़ों की पथरीली ढलानें खाली और बिना पेड़ों के रह गई हैं...जब तक पेड़ थे तब तक उनकी जड़ मिट्टी को पकड़कर रखती थी लेकिन पेड़ कटने से मिट्टी कमजोर हो गई और बारिश की सीजन में थोड़ा बहुत लैंड्स्लाइड होता रहा...और धीरे-धीरे हो रहे इसी लैंड्स्लाइड ने अब इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि जोशीमठ शहर ही डूबने वाला है..
आखिर में बात करते हैं सरकार की नपुसंकता की...ये तो आप सभी जानते हैं कि उत्तराखंड पहाड़ी राज्य हैं..यहां पानी भी भरपूर मात्रा में मौजूद है और पर्यटन के इलाके भी..लेकिन यही पानी और पर्यटन...जो उत्तराखंड के लिए वरदान थे..वो उत्तराखंड के लिए...जोशीमठ के लिए अभिशाप साबित होते दिख रहे हैं...पानी से भरी नदियां होने की वजह से सरकार ने यहां हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की लाइन लगा दी..तीर्थयात्रियों से ज्यादा से ज्यादा राजस्व हासिल करने के लिए चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं..ऑलवेदर रोड के नाम पर सड़कों की सीना छलनी किया जा रहा है...अब पहाड़ भी अपनी तरह से बदला ले रहा है..अब प्रकृति भी बता रही है कि इंसानी लालच को एक सीमा के बाद सहन नहीं किया जाएगा...
इसी उत्तराखंड ने टिहरी शहर को डूबते देखा है..लेकिन सबक नहीं सीखा...अब जोशीमठ डूब रहा है..फिर भी कोई सबक नहीं सीखा जाएगा और फिर एक और नया शहर डूबेगा..
- DEEPAK JOSHI
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