1000 मगरमच्छों की सेना से घिरी इंसानी बस्ती, क्षेत्र में दहशत का माहौल

1000 मगरमच्छों की सेना से घिरी इंसानी बस्ती, क्षेत्र में दहशत का माहौल

कभी घड़ियालों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए बनाया गया राष्ट्रीय चंबल अभ्यारण्य आज इंसानों के लिए ही खतरा बनता जा रहा है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में फैले इस अभ्यरण में कड़ाके की ठंड के कारण घडियाल पानी से बाहर निकल कर आबादी वाले हिस्सों में आ गये है, जिससे स्थानीय लोगों के लिए खतरा और भय की स्थिति बनी हुई है। 
राजस्थान के कोटा में चंबल नदी का काफी इलाका घड़ियाल सेंचुरी में आता है। ऐसे में यहां मगरमच्छ और घड़ियालों की अच्छी खासी तादाद है। इसके अलावा किशोर सागर तालाब, रायपुरा नाले, चंद्रलोई नदी में बड़ी संख्या में मगरमच्छ धूप सेंकते हैं।

आसानी से देखे जा सकते हैं

कोटा के थेगडा से रायपुरा जाने वाले रोड पर से एक बड़ा नाला गुजरता है। इसे रायपुरा नाले के नाम से जाना जाता है। ये इंडस्ट्रियल एरिया से होते हुए देवली अरब रोड, धाकडखेड़ी समेत कई इलाकों को कवर करता हुआ चंद्रलोई नदी तक जाता है। इस नाले में 100 से ज्यादा मगरमच्छ हैं। जो दस फुट लंबे तक है। सर्दियों में पानी के ऊपर किनारे पर आकर धूप सेंकते हैं।

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नदी किनारे पानी पीने आने वाले पशुओं पर मगरमच्छ हमला भी कर देते हैं। लोगों पर भी हमला किया है। लोगों के खेत नदी किनारे हैं। इसलिए लोगों में डर का मौहाल रहता है। चंद्रलोई नदी मानस गांव में चंबल से मिलती है।

खाना पचाने के लिए चाहिए होती है धूप

मगरमच्छ कोल्ड ब्लड वाले जीव होते ​है। ऐसे जीव ज्यादा ठंड नहीं बरदाश्त कर पाते। शरीर को फुर्तीला बनाए रखने और चलने फिरने के लिए इन्हें धूप की गर्मी की जरूरत होती है। 16-17 डिग्री से कम तापमान होने पर मगरमच्छ को धूप की जरूरत पड़ती है। मगरमच्छ ज्यादा गहरे पानी में नहीं रहता है। पानी की सतह से 6 फीट तक ठंडी रहती है। ऐसे में मगरमच्छ को खुद के बॉडी टेंपरेचर मेंटेन करना होता है। इसीलिए सर्दी में वह धूप निकलने के बाद चट्टानों पर आकर बैठ जाते हैं।  

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