अपराधी की बंदूक से बनी सुहागन, पुलिस की गोली से हुई विधवा
मै खुशी हूं.. हाँ वहीं खुशी जिसे बंदूक की नोंक पर मजबूर कर एक अपराधी की बीवी बना दिया गया। शराब के नशे में पूरी रात मेरे जिस्म को नोंचने वाले मेरे अपराधी पति ने ही मुझे विधवा बना दिया। वो जानता था उसका अंत गोली से होगा पर फिर भी उसने मुझ गरीब की
मै खुशी हूं.. हाँ वहीं खुशी जिसे बंदूक की नोंक पर मजबूर कर एक अपराधी की बीवी बना दिया गया। शराब के नशे में पूरी रात मेरे जिस्म को नोंचने वाले मेरे अपराधी पति ने ही मुझे विधवा बना दिया। वो जानता था उसका अंत गोली से होगा पर फिर भी उसने मुझ गरीब की खुशियों को ग्रहण लगा दिया। मुझे तो पता नहीं था सुहागन बन कर जिस घर में आयीं हूं यहां मौत का ऐसा तांडव होने वाला है।
मै तो खुद सहम गयी थी, डर कर एक कोने में छिप गयी थी, फिर भी पुलिस ने मुझे अपराधी बना दिया। मै सिर्फ नाम की खुशी हूं, अब पूरे समाज में मुझे अपराधी की बीवी कहकर पुकारा जायेगा। बस एक सवाल पूंछती हूं मेरा कसूर क्या था, क्या गरीब होना कसूर था , या गरीब की बेटी होना।
मै एक पत्रकार की हैसियत से बिकरू गांव में हुए पुलिस हत्याकांड के हर पहलू से वाकिफ हूं, माना कि पुलिस के साथ जो हुआ बेहद गलत है, पर क्या उसकी सजा उन्हें भी मिलेगी जिन्हें इन सब से कोई वास्ता नहीं था, उनका कसूर सिर्फ इतना था कि वे या तो विकास को जानते थे या उसके रिश्तेदार थे, ऐसे तो सबसे पहले गुनाहगार वो पुलिस है जिसकी शह पर विकास अपराधी बना, हर उस पुलिस वाले को भी जेल में डालना चाहिये।
खुशी की हर खुशी पर विकास का ग्रहण
कानपुर के एक क्षेत्र में रहने वाले गरीब परिवार की बेटी खुशी ने भी अपने जीवन साथी के रूप में एक बेहतर युवक के सपने संजोये थे। पर उसे नहीं पता था कि उसकी खुशियों को उसकी खूबसूरती ले डूबेगी। परिवार के एक सदस्य के अनुसार बिकरू गांव से सटे एक रिश्तेदार के जरिये एक दिन अमर दुबे पनकी आया था, जहां उसने बेटी को देखा, धीरे धीरे जानकारी जुटाई |
एक मई को अमर के यहां से रिश्ता आ गया। घर परिवार अच्छा दिखा तो परिवार ने हां कर दी। खुशी और अमर में बात भी होने लगे थी। पर शादी के ठीक बीस दिन पहले परिजनों को जब पता चजा कि अमर एक अपराधी है तो परिवार वालों ने शादी से इंकार कर दिया।
25 जून को उठवाया 29 को हो गयी शादी
परिजनों के अनुसार विकास दुबे ने 25 जून को पिता, भाई और परिवार के सदस्यों को अपने घर बुलाया, जहां उसने कहा कि पंडितों की जुबान होती है..अब शादी से काहे मना कर रहे, पिता ने गरीबी का हवाला देकर कहा की बेटी शादी नहीं करना चाहते है। तो खौफ का दूसरा रूप परिजनों को देखने को मिला, न कार्ड छपे न रिश्तेदार आये और 28 जून को पूरा परिवार बंदूक के दम पर बिकरू बुला लिया गया। यहां खुशी की न चाहते हुए उसकी शादी अमर से कर दी गयी।
परिजनों से बयां किया दर्द
खुशी ने शादी के दूसरे दिन परिजनों को कई चौकाने वाली बात बतायी थी, बेहद खास लोगों की माने तो खुशी के साथ पूरी रात शराब के नशे में अमर ने वहशीपन की हदें पार कर दी थी। पर पति और पत्नी के रिश्ते में ये दर्द भी खुशी भूल गयी। उसे मालूम था उसका विरोध परिवार की जान ले लेगा।
दो जुलाई की शाम 8 बजे अचानक अमर और उसके साथियों की तेजी ने खुशी की धड़कने बढ़ा दी थी। पूंछने पर अमर ने सिर्फ इतना कहा था कि चाचा के दुश्मनों को निपटाना है। अचानक रात में सोती हुई ,खुशी की नींद गोलियों की अवाज से खुली थी। एक कोने में दुबकी खुशी और उसकी सास समझ चुकी थी कि अनर्थ हो चुका है।
पुलिस ने बनाया खुशी और उसकी सास को आरोपी
पुलिस की फर्द के अनुसार घटना के वक्त जब पुलिस पर हमला हुआ तो अमर की मां और पत्नी चिला रही थी मारों पुलिस वालों को, देखों वहां छिपा है.. पर सवाल सीधा है पुलिस के नाम से घबराने वाली खुशी तीन दिन में इतना दिलेरे कैसे हो गयी। अगर वह इतनी दिलेर थी तो घटना के तुरन्त बाद पति की तरह भागी क्यों नहीं।
मैंने एक पत्रकार के हैसियत से बिकरू कांड में के काफी नजदीक से समझा है.. मै मानता हूं कि पुलिस की जान लेने वाले अपराधी छोड़े नहीं जाने चाहिेये, उनके साथ जो हुआ ठीक हुआ, पर अमर की पत्नी खुशी के साथ पुलिस जो कर रही है क्या वह ठीक है। मै ऐसा इसलिये कह रहा हैूं कि उसे अमर के साथ सिर्फ चार दिन बीता था, वो इस शादी से खुश नहीं थी।
रिपोर्ट- शाहिद पठान