कृषि विधेयक : हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद पंजाबी फिल्मी सितारे भी हुए विरोध में शामिल

कृषि विधेयक : हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद पंजाबी फिल्मी सितारे भी हुए विरोध में शामिल

पंजाब: 5 जून 2020 को सरकार ने किसानों के लिए तीन अध्यादेश पारित किया था। इस सप्ताह लोक सभा से यह बिल पास हो गया। गुरुवार को शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल ने ये घोषणा की थी कि उनकी पार्टी की खाद्य उद्योगों की केंद्रीय मंत्री इस्तीफा दे देंगी।इस घोषणा के बाद ही

पंजाब: 5 जून 2020 को सरकार ने किसानों के लिए तीन अध्यादेश पारित किया था। इस सप्ताह लोक सभा से यह बिल पास हो गया। गुरुवार को शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल ने ये घोषणा की थी कि उनकी पार्टी की खाद्य उद्योगों की केंद्रीय मंत्री इस्तीफा दे देंगी।इस घोषणा के बाद ही शुक्रवार हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया।

इस विरोध में सांसद हरसिमरत कौर ही नहीं, बल्कि पूरा विपक्ष भी विरोध प्रदर्शन कर रहा है। अब सितारों की दुनिया से भी विरोध की आवाज उठने लगी है। पंजाबी गायक और अभिनेता दिलजीत डोसांझ, अमी विर्क, सरगुन मेहता समेत कई फिल्मी सितारों ने किसानों के प्रदर्शन का समर्थन किया।
इस बिल के विरोध में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान सबसे ज्यादा प्रदर्शन कर रहें हैं।

क्या है किसानों के लिए लाया गया बिल?

आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020
यह कानून 1955 में बनाया गया था। इसके तहत सरकार यह सुनिश्चित करती है कि किसी समान का कितना भंडारण हो सकता है। काला बाजारी रोकने के लिए ये कानून लाया गया था।
अब सरकार ने इसमें संशोधन कर दिया है। सरकार सिर्फ युद्ध या आपदा के समय ही भंडारण का नियंत्रण करेगी। बाकी समय भंडारण पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं होगी।

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020

इसके तहत सरकार ने छूट दी है कि एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) मंडियों के बाहर भी किसान अपनी उपज बेच सकते हैं और कोई भी किसान से उपज खरीद सकता है।

मूल्य आश्वाशन पर किसान ( बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा बिल

इसके तहत किसान फसल बोने के वक़्त ही खरीदार से समझौता कर सकते हैं कि वो किस दाम पर बेचेंगे।

क्या है विरोध का कारण?

आज़ादी के बाद किसानों पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए ये एपीएमसी एक्ट 1963 में लाया गया था।
अक्सर ये बात उठती है कि बिचोलियों के कारण किसानों को उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिलती है। ऐसा भी कहा जाता है कि अनाज के अंदर कमियां निकालकर किसानों के अनाज का दाम कम कर दिया जाता है लेकिन खरीदने वाला उसी अनाज को ज्यादा दाम पर बेचते हैं।
विरोध की बात करें तो सबसे ज्यादा प्रदर्शन एपीएमसी के बदलाव के कारण हो रहा है।

सरकार ने इसमें बदलाव कर नया बिल पारित कर दिया है। इसके मुताबिक किसान मंडियों के बाहर भी अपना अनाज बेच सकते हैं। आसान भाषा में कहे तो ये किसानों के ऊपर होगा की उन्हें अपना सामान किसे और कितने में बेचना है। खुला बाजार होगा।


हरियाणा के किसानों का कहना है कि सरकार एमएसपी ( न्यूनतम समर्थन मूल्य) बंद करना चाह रही है ताकि सरकारी खरीदारी बंद हो जाए। सरकार चावल, गेंहू समेत 22 फसलों की न्यूनतम मूल्य तय करती है। इसके तहत सरकारी एजेंसियां सरकारी मूल्य पर किसानों से अनाज खरीदती हैं। यह मूल्य किसानों को आश्वाशन देती है कि बाज़ार मूल्य के ऊपर नीचे होने से उन्हें नुकसान नहीं होगा। सरकार किसानों से अनाज खरीद के भंडारण करती है और यही गरीबों में बांटा जाता है।
संसद सत्र के दौरान यह चिंता विपक्ष ने भी जाहिर की। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस व्यवस्था से भी बाहर आना चाहती है।

शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट

विपक्ष का आधार है एक कमेटी की रिपोर्ट। अगस्त 2014 में सरकार ने 6 सदस्यों की शांता कुमार कमेटी बनाई। इस कमेटी ने कहा कि केंद्र सरकार को पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और उड़ीसा में अनाज के भंडारण का काम राज्य सरकारों को देना चाहिए साथ ही निजी क्षेत्रों को भी इजाजत देनी चाहिए। अब विपक्ष और इसके खिलाफ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार ये भंडारण कम करना चाहती है। एमएसपी से मिलने वाले लाभ किसानों से छीने का रहे हैं।

आज प्रधानमंत्री मोदी ने इन आलोचनाओं पर बात रखी। उन्होंने कहा कि ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि सरकार के द्वारा किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं दिया जाएगा। ये मनघड़ंत बातें की जा रही हैं कि किसानों से धान, गेहूं इत्यादि की खरीद सरकार द्वारा नहीं की जाएगी। ये झूठ है। किसानों के साथ धोका है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार किसानों को उचित एमएसपी दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।

रिपोर्ट: मानसी शर्मा

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