मोदी @70 : अनंत संभावनाओं की शख्सियत

मोदी @70 : अनंत संभावनाओं की शख्सियत

सार्थक इतिहास में नाम उन्हीं का स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होता है, जो अपनी कर्मभूमि के लिये कुछ कर गुजरने को तत्पर होते हैं। सफलता की रेखाएं भी उन मनुष्यों के कपाल में अंकित होती हैं, जिनके हृदय में नवीन आविष्कारों की आंधी हरहराया करती है, जो कर्मक्षेत्र में कमर कस कर खड़े होने की

सार्थक इतिहास में नाम उन्हीं का स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होता है, जो अपनी कर्मभूमि के लिये कुछ कर गुजरने को तत्पर होते हैं। सफलता की रेखाएं भी उन मनुष्यों के कपाल में अंकित होती हैं, जिनके हृदय में नवीन आविष्कारों की आंधी हरहराया करती है, जो कर्मक्षेत्र में कमर कस कर खड़े होने की ताकत रखते हैं, जिनकी मानसिक शक्तियां तेजस्वी, अटल और प्रतापी होती हैं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ऐसे ही एक ओजस्वी शख्सियत भारत के प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र दामोदर दास मोदी’, जिनका आज जन्मदिवस भी है।

17 सितम्बर 1950 को वड़नगर, ‘गुजरात’ में जन्में नरेंद्र मोदी का आरंभिक जीवन बेहद गरीबी और संघर्षों में बीता। बचपन में पढ़ाई को लेकर जितना नरेंद्र सजग थे, उतना ही अपने काम के प्रति निष्ठावान। अर्थात् नरेंद्र स्कूल के बाद नज़दीक के रेलवे स्टेशन पर बने पिता की चाय की छोटी-सी दुकान पर हांथ भी बटा लिया करते थे।

राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत नरेंद्र मात्र 8 साल की उम्र से ही ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ‘ के साथ जुड़ गए। 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक 21 महीने की लम्बी अवधि के आपातकाल में नरेंद्र मोदी देश के कई बड़े नेताओं के सम्पर्क में आये और साथ काम भी किया।

राजनीति में मोदी

साल 1987 का दौर आया, जब नरेंद्र मोदी को आरएसएस से भारतीय जनता पार्टी में जाने का मौका मिला। राजनीति के क्षेत्र में उनका सफ़र यहीं से शुरू हुआ और अक्टूबर, 2001 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के पद के रूप में शपथ ली। साल 2001 से साल 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। गुजरात के इस नेतृत्व को सम्पूर्ण देश में बेहतरीन प्रशासक और विकास पुरुष के रूप में खूब सराहना मिली तथा नवोन्मेषी एवं कुशल शासन-प्रशासन का एक नवीन ‘गुजरात मॉडल’ भारतीय राजनीतिक पटल पर उभर कर सामने आया। हांलाकि, गुजरात दंगों के पश्चात् मोदी के कठोर प्रशासन पर सवालिया निशान उठाया गया और जमकर आलोचना भी हुई। कहते हैं कि-

“समर में घाव खाता है उसी का
मान होता है,
छिपा उस वेदना में अमर वरदान
होता है,
सृजन में चोट खाता है छेनी और
हथौड़ी का,
वही पाषाण मंदिर में कहीं
भगवान होता है।”
(पंक्तियाँ : अमृत लाल)

बात 2014 की है, जब आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। ‘मोदी-लहर’ में बीजेपी ने अपना परचम लहराया और लोकतंत्र के पवित्र मंदिर से कई अहम फैसले भी लिए।

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बात ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य को बढ़ाने की हो या पिछले 70 दशकों से अनसुलझे मुद्दों को सुलझाने की हो, सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’। पिछले 6 सालों में सरकार द्वारा 250 से ज्यादा कार्यक्रमों और योजनाओं को सुचारू रूप से कार्यान्वित किया गया।

मोदी के नेतृत्व के भरोसे ही साल 2019 के आम चुनावों में बीजेपी ने पहले से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमा लिया। देश की जनता ने उनके ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के नारे को सराहा, जिसका परिणाम उन्हें 2019 के चुनाव में मिला भी।

370 व नक्सलवाद का मुद्दा

जब देश का शीर्ष नेतृत्व अनुच्छेद- 370 हटाने की कवायद में जुटा था, तो किसी को ऐसा नही लग रहा था कि ऐसा भी सम्भव है। बीते 6 सालों में सरकार ने हर असम्भव कार्य को सम्भव कर दिखाया और अपनी ‘Nation First’ की मंशा स्पष्ट कर दी। कई दशकों से चली आ रही दो वर्गों के बीच सबसे बड़ा विवादित मामला ‘रामजन्मभूमि विवाद’ का भी सरकार ने बड़ी सूझबूझ एवं शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा किया, जो कि भविष्य के लिए गंगा-जमुनी तहजीब का एक बड़ा उदाहरण बन गया है।

पिछले 6 वर्षों में नरेंद्र मोदी की सशक्त नीति के परिणामस्वरूप सरकार सीमा पर आतंकवाद और नक्सलवाद पर भी नकेल कसने में कामयाब रही है। सर्जिकल स्ट्राइक से मोदी सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि ये पुराना भारत नही है, ये ‘न्यू इंडिया’ है तथा आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नही किया जाएगा। नरेंद्र मोदी कहते हैं कि –

“आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है।
एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है।”

कोविड महामारी का दौर

वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रकोप के प्रारंभ में ही सरकार द्वारा समय पर लॉकडाउन को पूरी दुनिया से सरहाना मिली। जहाँ शुरुआत से ही बड़े-बड़े देश कोरोना से जूझ रहे थे, वहीं समय पर लॉकडाउन के चलते सरकार ने स्वास्थ्य प्रणाली और अन्य सुविधाओं को दुरुस्त कर लिया, जो आगे चलकर इस लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।

हाल में सीमा पर चीन से मिल रहे प्रतिरोध एवं धमकियों पर भी सरकार ने कड़ा सन्देश दे दिया है और चीन की विस्तारवादी विचारधारा पर अंकुश लगाने की कवायद में जुटी हुई है।
बीते वर्षों में वैश्विक पटल पर भी भारत की बढ़ती धाक की धमक को महसूस किया गया है। मोदी की विदेश नीति की सक्रियता के माध्यम से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की वास्तविक क्षमताओं को वैश्विक मंच पर खूब सराहना मिली है। सारत:, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री का विश्व को दिए जा रहे संदेश का कुछ इस तरह जिक्र मौंज़ू होगा –

“अभी मुट्ठी नहीं खोली है मैंने
आसमां सुन ले,
तेरा बस वक्त आया है मेरा तो
दौर आएगा!”

लेखक: हर्षित दुबे

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