प्रणब मुखर्जी: कांग्रेस का वफ़ादार सिपाही जो कभी सेनापति न बन सका

प्रणब मुखर्जी: कांग्रेस का वफ़ादार सिपाही जो कभी सेनापति न बन सका

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का 84 वर्षीय आयु में निधन हो गया | मुखर्जी के निधन की जानकारी उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर दी। पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर सरकार की ओर से सात दिनों का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है। पूरे भारत में 31 अगस्त से 6 सितंबर तक यह शोक

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का 84 वर्षीय आयु में निधन हो गया | मुखर्जी के निधन की जानकारी उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर दी। पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर सरकार की ओर से सात दिनों का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है। पूरे भारत में 31 अगस्त से 6 सितंबर तक यह शोक मनाया जाएगा।

पत्रकार के रूप में की थी जीवन की शुरुआत

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935,पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहाँ हुआ था। प्रणब मुखर्जी शिक्षा के क्षेत्रा में बहुत योग्य थे | उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की थी। मुखर्जी एक वकील भी रह चुके थे. उन्हें मानद डी.लिट उपाधि भी प्राप्त है। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया।

क्या रहा राजनैतिक करियर

केंद्र की राजनीति में दशकों का सफर तय करने वाले दिग्गज राजनेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राजनीति से पुराना नाता था | प्रणब मुखर्जी के पिता सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी के साथ-साथ कांग्रेस के कद्द्वार नेता भी थे | जो 1920 से कांग्रेस में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य और पश्चिम बंगाल के वीरभूम से जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। प्रणव मुखर्जी ने अपने राजनैतिक भविष्य की शुरुआत सत्तर के दशक (1969) में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की । वे कांग्रेस टिकट पर राज्यसभा के लिए भी चुने गए. 1973 में वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए और उन्हें औद्योगिक विकास विभाग में उपमंत्री की जिम्मेदारी दी गई. इसके बाद वह कई बार फिर से राज्यसभा के लिए चुने गए | आपात काल के बाद कांग्रेस की हार हुई तब वे इंदिरा गांधी के सबसे विश्वस्त सहयोगी के रूप में सामने आये .आपको बता दे कि मुखर्जी भारत के तब सबसे कम उम्र के वित्त मंत्री बने जब उन्हें 1982 में 47 साल की उम्र में इस पद पर नियुक्त किया गया था.

क्यों नहीं बन सके प्रधानमंत्री

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था। 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तब कांग्रेस में सबसे खास और अपनी अच्छी छवि बना चुके प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था।साथ ही आपको बता दें कि प्रणव मुखर्जी पीएम बनने की इच्छा भी रखते थे लेकिन कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं को किनारे करके राजीव गांधी को प्रधानमंत्री चुन लिया गया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी और प्रणव मुखर्जी बंगाल के दौरे पर थे । दोनों एक ही साथ विमान से आनन-फानन में दिल्ली लौटे । प्रणब मुखर्जी का ख्याल था कि वह कैबिनेट के सबसे सीनियर सदस्य हैं इसलिए उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया जाएगा ।लेकिन अरुण नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपना नया कैबिनेट गठन किया लेकिन इंदिरा सरकार के कैबिनेट में दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रणव मुखर्जी को कोई भी मंत्री पद नहीं दिया गया।

राजीव गाँधी की बनाई कैबिनेट में जगह न मिलने से नाराज होकर प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और अपनी अलग पार्टी बनाई प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया, लेकिन उनकी अलग पार्टी कोई खास असर नहीं दिखा पाई, हालांकि जब राजीव गांधी सत्ता में रहे, तब प्रणब मुखर्जी राजनीति से दूर ही रहे। राजीव गांधी से सुलह होने के बाद 1989 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया । जब राजीव गांधी की हत्या हुई, उसके बाद पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो प्रणब मुखर्जी का कद बढ़ा, राव उनसे सलाह मशवरा तो करते रहे लेकिन फिर भी उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं दी गई। हालांकि राव ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया ।

सोनिया के साथ राजनीति की शुरुआत फिर से करने पर उन्हें 1995 में विदेश मंत्री बनाया गया, हालांकि राव सरकार का यह आखिरी साल था| इसके बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो 9 साल तक सरकार में वापसी नहीं हो सकी। सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस की कमान संभाली तो प्रणब उनके साथ मजबूती से खड़े रहे और साल 2004 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई तो सोनिया गांधी ने विदेश मूल का व्यक्ति होने की चर्चाओं के बीच घोषणा कर दी कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी|

ऐसे में प्रणब मुखर्जी के प्रधानमंत्री बनने की चर्चाएं तेज हो गई लेकिन सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला ले लिया । इससे प्रणब मुखर्जी के हाथ से पीएम बनने का मौका एक बार फिर फिसल गया| हालांकि इस दौरान प्रणब मुखर्जी ने वित्त से लेकर विदेश मंत्रालय तक का कार्यभार संभाला और पार्टी के संकट मोचक की भूमिका में रहे इसके बाद साल 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया और वह देश के राष्ट्रपति चुने गए।

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