
राजपथ पर दिखा छत्तीसगढ़ के लोक संगीत का वाद्य वैभव
नयी दिल्ली। विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के 72वें वार्षिकोत्सव के मौके पर मंगलवार को राजधानी के राजपथ पर छत्तीसगढ़ के लोक संगीत का वाद्य वैभव नजर आया। छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्यों को उनके सांस्कृतिक परिवेश के साथ प्रदर्शित करती प्रदेश की झांकी राजपथ पर सलामी मंच के सामने
नयी दिल्ली। विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के 72वें वार्षिकोत्सव के मौके पर मंगलवार को राजधानी के राजपथ पर छत्तीसगढ़ के लोक संगीत का वाद्य वैभव नजर आया।
छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्यों को उनके सांस्कृतिक परिवेश के साथ प्रदर्शित करती प्रदेश की झांकी राजपथ पर सलामी मंच के सामने से गुजरी , तो दर्शकों के अपार जनसमूह ने करतल ध्वनि से स्वागत किया।
झांकी में छत्तीसगढ़ के दक्षिणी छोर में बस्तर से उत्तर में अवस्थित सरगुजा तक के ग्रामीण और जनजातीय बहुल इलाकों में विभिन्न मौकों पर प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्य शामिल किए गए थे। इन वाद्यों के माध्यम से प्रदेश के स्थानीय तीज त्योहारों तथा रीति रिवाजों में निहित सांस्कृतिक मूल्यों की झलकियां पेश की गयी।
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झांकी के सामने वाले हिस्से में एक जनजातीय महिला बस्तर का प्रसिद्ध लोक वाद्य धनकुल बजा रही थी। झांकी के बीच में फूँक कर बजाए जाने वाले वाद्य यंत्र तुरही को प्रदर्शित किया गया था। तुरही की धुन पर गौर नृत्य प्रस्तुत करते जनजातीय लोगों को दिखाया गया। झांकी के अंत में माँदर बजाते हुए युवक को दिखाया गया।
झांकी में अलगोजा, खंजेरी, नगाड़ा, टासक, बांस बाजा, नकदेवन, बाना, चिकारा, टुड़बुड़ी, डांहक, मिरदिन, मांडिया ढोल, गुजरी, लोहाटी, टमरिया, घसिया ढोल और तम्बुरा जैसे वाद्य यंत्रों को भी प्रदर्शित किया गया।
इन्पुट- यूनीवार्ता