जिन्दगी अगर मौका दे तो सोनू सूद बनना

जिन्दगी अगर मौका दे तो सोनू सूद बनना

स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंगों में उनकी एक जापान यात्रा का वर्णन आता है , जिसमें वे जापान के किसी स्टेशन पर अच्छे फल ना मिलने की बात कहते हैं और उनकी यह बात एक जापानी नौजवान सुन लेता है । वह फौरन टोकरी भर फल उन तक पहुंचाता है । कीमत पूछने पर केवल

स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंगों में उनकी एक जापान यात्रा का वर्णन आता है , जिसमें वे जापान के किसी स्टेशन पर अच्छे फल ना मिलने की बात कहते हैं और उनकी यह बात एक जापानी नौजवान सुन लेता है । वह फौरन टोकरी भर फल उन तक पहुंचाता है । कीमत पूछने पर केवल यही कहता है कि – ‘भारत में किसी से यह मत कहिएगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते । ‘ राष्ट्रप्रेम और निस्वार्थ कर्म इन भावों से परे आखिर और क्या है । 

 1986 में आई फिल्म ‘अंकुश’ में एक गीत है-  ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ उसी में पंक्तियां आती हैं –
    हम ना सोचें हमें क्या मिला है     हम ये सोचें किया क्या है अर्पण

 और केवल इतना ही सत्य काफी है जीवन को संतुलित और संयमित बनाए रखने के लिए। 

देश किसी जड़ स्थिति का नाम नहीं है। यह गतिमय भाव है जो हर एक व्यक्ति की गति से प्रभावित होता है । तिरंगे में मौजूद गतिशील चक्र उसकी परिवर्तन की निरंतरता का प्रमाण है।  वह प्रतिपल परिवर्धित होती सत्ता है।  यह सत्ता अपनी जीवंतता हमसे ही ग्रहण करती है और जीवंतता आशाओं और उम्मीदों का ही पर्याय है और उसी उम्मीद का एक और पर्याय बनकर उभरा है एक नाम – ‘सोनू सूद’। बताया जा रहा है कि सोनू सूद के माध्यम से करीब 12000 प्रवासियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया । जब पूरा देश कामगारों की मन विचलित कर देने वाली स्थिति से वाकिफ हो , जब ट्रेन रास्ता भटक रही हों ; ऐसे वक्त में कुछ सुखद छवियां भी  ढांढस बंधा जाती हैं  ।  केदारनाथ सिंह अपनी एक कविता में लिखते हैं –

  ” कितना भव्य था     एक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी पर     महज तीन-चार पत्तों का हिलना     उस विकट सुखाड़ में     सृष्टि पर पहरा दे रहे थे     तीन चार पत्ते ।”

मौसम बदलने पर बड़े-बड़े पेड़ ठूँठ हो जाते हैं कई बार तब यह तीन-चार पत्ते ही हैं , जो दुनिया को बचाने का माद्दा रखते हैं । 

 इससे पहले शायद ही सोनू की इतनी चर्चा कभी हुई हो । बड़े-बड़े नायक- महानायक जो ना कर सके वो सोनू ने कर दिखाया ।  करोड़ों कमाने वाले एक्टर – क्रिकेटर लूडो खेल रहे हैं , प्रोडक्ट्स का प्रमोशन कर रहे हैं , टिक टॉक पर वीडियो बना रहे हैं , और सोनू उन लोगों को बसों में बैठाकर रवाना कर रहा है जिनमें से अधिकांशतः उसकी तीन फिल्मों के नाम भी शायद ना बता पाएं . . .  क्योंकि मजदूर सिनेमा हॉल बनाते हैं . . .फिल्में नहीं देखते उनमें, मजदूर स्टेडियम बनाते हैं पर क्रिकेट देखने नहीं जाते …, वह बड़े-बड़े होटल बनाते तो हैं पर कभी उन्हें खाने- रुकने नहीं जाते , जा ही नहीं सकते ।

 इससे पहले मजदूरों को,  कामगारों को कभी इस तरह विमर्श का विषय बनाया गया हो कम से कम मेरी जानकारी में नहीं। क्योंकि राजनीति और सत्ता की भव्य इमारतों को , गलियारों को बनाने के बाद उनके नसीब में  आती है केवल  एक तख्ती,   जिस पर लिखा होता है – ” यह आम रास्ता नहीं है प्रवेश निषेध ! ” 

पर अवसर अपने रास्ते स्वयं चुनता है । अंग्रेजी में कहावत है ‘अपॉर्चुनिटी नॉक्स द डोर बट वंस’ । जिंदगी सबको कुछ अच्छा करने का  एक ना एक  मौका जरूर देती है । 

आपको भी जिंदगी अगर मौका दे तो सोनू सूद बने । 
एक दिन के लिए सही ।एक व्यक्ति के लिए सही ।

  • शिवम् सागर ‘समीक्षित’

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