मीडिया और तबलीगी जमाती..पहले गाली..अब ताली

मीडिया और तबलीगी जमाती..पहले गाली..अब ताली

जब तबलीगी जमात के लोगों के कोरोना केस सामने आ रहे थे..मीडिया उसे दिखा रहा था तो किस तरह मीडिया पर कोरोना को कम्युनल कलर देने का आरोप लग रहा था

याद है आपको…जब तबलीगी जमात के लोगों के कोरोना केस सामने आ रहे थे..मीडिया उसे दिखा रहा था तो किस तरह मीडिया पर कोरोना को कम्युनल कलर देने का आरोप लग रहा था..एक तबके का मानना था कि कोरोना को जबरदस्ती तबलीगी जमात से जोड़ा जा रहा है..जबकि ये हकीकत है कि एक वक्त पर देश में कोरोना के जितने मरीज थे..उनमें से 27% अकेले तबलीगी जमात से जुड़े थे..ये वो लोग थे जो सीधे तबलीगी जमाती थी..इनके सम्पर्क में आकर भी कई लोगों को कोरोना हुआ..

यानि करीब एक-तिहाई कोरोना केस की वजह तबलीगी जमात वाले थे..कई राज्यों में तो कोरोना मरीजों में जमातियों का हिस्सेदारी 80 से 90% तक थी..कोरोना मरीज जमातियों की तादाद हज़ारों में थी..जमातियों के मस्जिदों में छिपने..हॉस्पिटल में बदसलूकी और मारपीट की खबर अलग से..लेकिन मीडिया को गाली देने के साथ-साथ उसे गोदी मीडिया कहा जाता था.

अब वर्तमान में आइये..कुछ जगह तबलीगी जमात वाले प्लाज्मा दान दे रहे हैं..कहा जा रहा है कि इससे कोरोना के मरीजों के इलाज में मदद मिलेगी..हालांकि इसका सक्सेस रेट क्या है ? क्या ये तकनीकी वाकई इतनी कारगर है जितनी बताई जा रही है ? अगर ऐसा है तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली जैसे विकसित देशों ने इसे बड़े पैमाने पर क्यों नहीं अपनाया क्योंकि प्लाजमा तकनीकी नई तो नहीं है ? कई रोगों में इसका सहारा लिया जाता है..तो कोरोना में क्यों नहीं लिया गया ? सवाल कई है चूंकि मैं मेडिकल एक्सपर्ट नहीं हूं..इसलिए जिस बात का जानकारी नहीं है..उसपर अधूरा ज्ञान देना ठीक नहीं है..और मेरी पोस्ट का कंसर्न भी ये नहीं है..लेकिन आपने देखा होगा पिछले कुछ दिन से यही मीडिया तबलीगी जमात वालों को देवदूत की तरह पेश कर रहा है..ऐसा लग रहा है कि इनके प्लाजमा देने से कोरोना बीमारी का रामबाण इलाज ढूंढ लिया गया है..जिस तबके को तब मीडिया से दिक्कत थी..अब वही मीडिया से खुश है..ताली बजा रहा है..अब सवाल ये है कि क्या मीडिया तब गलत था और अब अचानक सही हो गया ? नहीं ऐसा नहीं है..मीडिया तब भी जो बता रहा था उसमें काफी हद तक सच था..अब जो बता रही है इसमें भी थोड़ा सच है..

अब मीडिया राई का पहाड़ बना रही है (यानी 20-30 जमातियों को प्लाज्मा दान को कोरोना का राम बाण बता रही है)..तब मीडिया ने कटहल का पहाड़ बनाया था (यानी कोरोना फैलाने वाले जमाती हज़ारों थे)..यानी दोनों ही परिस्थितियों में मीडिया की खबर में सच का पुट तो है..तो ऐसा क्यों हो रहा है कि तब मीडिया को गाली पड़ रही था और अब ताली ? क्या अंतर आ गया है ?अंतर ये आया है कि सबको अपने मन मुताबिक खबरें चाहिए..अगर सच कड़वा है तो उसकी अनदेखी कर दी जाएगी लेकिन अगर अर्धसत्य आपके पक्ष में है तो आप उसे ब्रह्मवाक्य मानकर ढोल बजाया स्टार्ट कर देंगे..यही अब हो रहा है..जमातियों ने हज़ारों की तादाद में कोरोना फैलाया लेकिन आपको वो कड़वा सच पसंद नहीं था..इसलिए आपने मीडिया को गाली दी..अब 20-30 जमाती प्लाज्मा दान दे रहे हैं तो आप इसे रामबाण इलाज समझकर यूरेका-यूरेका चिल्ला रहे हैं..कुल मिलाकर सबको अपने पसंद की खबरें देखनी हैं..सबका अपना सच है..सच का सामना किसी को करना नहीं है..मूल मुद्दा ये है कि थोड़ा-बहुत अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग हर मीडिया करता है..फिर चाहे वो लेफ्ट विंग हो या राइट विंग..सैंकड़ों चैनल, हज़ारों अखबार हैं..थोड़ा-बहुत मिर्च-मसाला सब लगाते हैं..बस अंतर सिर्फ इतना होता है कि तो चैनल या अखबार आपकी मनपंसद खबर में अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग करता है..वही आपके मुताबिक “निष्पक्ष और स्वतंत्र” होता है..और हां जब तबलीगी जमाती कोरोना फैला रहे थे तो उनके धर्म का उल्लेख करने में मीडिया को गाली मिल रही थी..आज आप खुद ये बता रहे हैं कि तबलीगी जमाती मुसलमान हैं और कोरोना के इलाज में मदद कर रहे हैं..एक बात और…

प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना में फायदा होता है या नहीं ? ये तो अभी शोध का विषय है..लेकिन सैंकड़ों पुलिस वालों और डॉक्टर-नर्सेज का जो खून बहा था..वो किसने बहाया था..ये भी बता दीजिए..कल ही महाराष्ट्र के 3 शहरों में पुलिसवालों पर हमला हुआ है..आज भी कई शहरों में पुलिस पर हमला हुवा..हमला करने वालों का धर्म पता लग जाए तो बता दीजिएगा..तो कहने का मतलब ये है कि धूर्त आप भी हैं..सेलेक्टिव आप भी हैं..आपकी पसंद के मुताबिक खबर चले तो फिर आपको ना मीडिया से दिक्कत है..ना ही धर्म बताए जाने से..वैसे आज ही प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर सेंट्रल हेल्थ मिनिस्ट्री ने साफ कर दिया है कि इसका सिर्फ ट्रायल चल रहा है..जिस तरह कोरोना के इलाज को लेकर कई शोध हो रहे हैं..वैसे ही प्लाज्मा थेरेपी भी एक शोध..एक ट्रायल है..इससे कोरोना का इलाज होता है..इसका कोई सबूत नहीं है..कहीं-कहीं तो प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल जानलेवा साबित हुआ है..नोट- हज़ारों तबलीगी जमातियों द्वारा कोरोना फैलाने और चंद तबलीगी जमातियों द्वारा खून दान दिए जाने पर जो लोग लहालौट हो रहे हैं..उन लोगों से एक सवाल..क्या अपराधी के प्रायश्चित करने से अपराध खत्म हो जाता है ?Deepak Joshi

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