शायद पहली बार, एशिया के तीन सबसे बड़े कोयला बाज़ार, भारत, चीन और इंडोनेशिया, एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ कोयले का दौर अपने शिखर पर पहुँचकर घटने की कगार पर है।
नई रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ये देश अपनी मौजूदा रफ्तार से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बढ़ते रहे, तो 2030 तक पावर सेक्टर से निकलने वाला कुल कार्बन उत्सर्जन घटने लगेगा।
यह निष्कर्ष सामने आया है Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) की नई रिपोर्ट में, जो बताती है कि दुनिया के कोयले के इस्तेमाल का 73% हिस्सा इन्हीं तीन देशों से आता है।
ऐसे में अगर यहाँ कोयले की मांग घटती है, तो इसका असर पूरे ग्लोबल एमिशन ट्रेंड पर पड़ेगा।
चीन ने दिखाया रास्ता, भारत पकड़ रहा रफ्तार
रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने पहले ही इतनी नई क्लीन बिजली क्षमता जोड़ ली है कि उसकी नई ऊर्जा मांग पूरी तरह कोयले के बिना पूरी हो सकती है।
CREA के को-फाउंडर और लीड एनालिस्ट लॉरी माइलिविर्टा कहते हैं, “चीन का कोयला उपयोग 2024 से ही गिरना शुरू हो गया है। अगर यही रफ्तार जारी रही, तो कोयले की खपत का पीक बहुत करीब है।”
भारत के लिए कहानी थोड़ी अलग है, बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि आबादी और अर्थव्यवस्था दोनों तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
फिर भी, भारत ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तय 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल पावर कैपेसिटी का आधा लक्ष्य पहले ही पूरा कर लिया है, और यही वजह है कि विश्लेषक मानते हैं कि अगर यह रफ्तार बनी रही, तो भारत में भी कोयला बिजली 2030 से पहले पीक पर पहुँच सकती है।
CREA के एनालिस्ट मनोज कुमार कहते हैं, “भारत अगर अपने मौजूदा टारगेट पूरे करता रहा, तो कोयले का इस्तेमाल 2030 से पहले ही घटने लगेगा। लेकिन इसके लिए ग्रिड लचीलापन, स्टोरेज और ट्रांसमिशन को मज़बूत बनाना ज़रूरी है।”
इंडोनेशिया का सोलर मिशन और तीनों देशों के लिए साझा चुनौती
रिपोर्ट बताती है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुभियांतो का 100 गीगावॉट सोलर प्रोग्राम अगर समय पर लागू हुआ, तो वहाँ भी कोयले की बिजली 2030 तक अपने चरम पर पहुँचकर घटने लगेगी।
हालाँकि, इंडोनेशिया के मौजूदा ऊर्जा प्लान में अभी भी कुछ समय के लिए फॉसिल ईंधनों की बढ़ोतरी शामिल है।
CREA की एनालिस्ट कैथरीन हासन कहती हैं, “असल मौका अब इस विज़न को ज़मीन पर उतारने का है।
ज़रूरत है कि नई ऊर्जा क्षमता में क्लीन एनर्जी को पूरी बढ़त मिले।”
सबसे बड़ा खतरा: कोयले के हित समूह
रिपोर्ट साफ़ चेतावनी देती है कि अगर कोयले की नई परियोजनाओं को लगातार मंज़ूरी मिलती रही, तो इससे ऐसे ‘हित समूह’ (vested interests) बन सकते हैं जो एनर्जी ट्रांज़िशन को धीमा कर देंगे।
CREA का अनुमान है कि अगर इन देशों में कोयले का इस्तेमाल 2030 के बाद तेज़ी से घटाया जाए, तो कार्बन एमिशन में कमी भारत के 2019 के कुल उत्सर्जन के बराबर होगी, यानि एक ऐसा असर जो ग्लोबल डिकार्बनाइज़ेशन एजेंडा में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
लॉरी माइलिविर्टा ने कहा, “2030 के बाद भी अगर रिन्यूएबल एनर्जी की ग्रोथ दर बरकरार रही,
तो यह कमी बिजली क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक साबित होगी। लेकिन अगर रफ्तार धीमी हुई, तो पूरी उपलब्धि खो सकती है।”
भारत के लिए संदेश: ट्रांज़िशन अब ‘कब’ का नहीं, ‘कैसे’ का सवाल है
भारत के पास आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रिन्यूएबल पोटेंशियल है। सोलर और विंड दोनों की रफ्तार तेज़ है, और 500 गीगावॉट का टारगेट अब सिर्फ़ कागज़ पर नहीं, ज़मीन पर उतर रहा है।
लेकिन CREA की रिपोर्ट याद दिलाती है कि ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टोरेज और डिस्कॉम सुधारों के बिना
यह बदलाव अधूरा रहेगा।
एक साझा भविष्य
भारत, चीन और इंडोनेशिया, तीनों देशों की कहानी यह दिखाती है कि एशिया अब सिर्फ़ “कोयले का केंद्र” नहीं रहा, बल्कि क्लाइमेट एक्शन का केंद्र भी बन सकता है।
अगर आने वाले पाँच सालों में इनकी नीतियाँ क्लीन एनर्जी को प्राथमिकता देती रहीं, तो दुनिया की हवा साफ़ करने की शुरुआत यहीं से हो सकती है।