सविता सिंह सैवी : अपने बारे में आप क्या कहना चाहती हैं ?
पूनम पांडेय : मेरा नाम पूनम पाण्डेय है । मेरा पिता का नाम स्वर्गीय प्रभुनाथ ओझा और माँ का नाम स्वर्गीय श्रीमती फूलमोनी देवी था ! पति का नाम श्री नागेश्वर पाण्डेय है, दो बच्चे है एक बेटी निकिता और बेटा आदित्य ।
मेरा जन्म पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर आसनसोल में हुआ। मेरी शिक्षा आसनसोल में ही संत मैरी गोरेट्टी स्कूल से हुई । वहीं से मैंने अपना ग्रैजूएशन भी पूरा किया । पति के पूर्ण सहयोग से बेटी निकिता के जन्म के बाद मैंने फ़ैशन & टेक्सटाइल में डिप्लोमा भी किया ।
सविता सिंह सैवी : लिखने की प्रेरणा आपको कैसे और कहाँ से मिली ?
पूनम पांडेय : बंगाल के छोटे पर बड़े ही प्यारे से शहर आसनसोल में बचपन और युवावस्था बीता .. वहाँ की हरियाली, वहाँ की प्राकृतिक और ग्रामीण वातावरण , दामोदर नदी का किनारा हमेशा ही मुझे लुभाता रहा, कविताओं के लिये प्रेरित करता रहा, माँ-पापा ने भी हमेशा ही कविता लिखने के लिए प्रोत्साहन बढ़ाया, मेरी सखियों ने भी निरंतर मेरा उत्साहवर्धन किया । उन्हें मेरी कविताएँ पढ़ना और सुनना काफ़ी अच्छा लगता, फिर विवाह पश्चात पति ने और बच्चों ने भी हौंसला बनाये रखा, पिछले वर्ष इंक पब्लिकेशन से मेरा पहला काव्य संग्रह ” मेरी अधूरी ख्वाहिशें ” प्रकाशित हुआ, जिसमें मैंने अपनी सभी ख्वाहिशों को करीने से शब्दों में सजाया है..!!
सविता सिंह सैवी : आपके जीवन में लेखन क्या मायने रखता है ?
पूनम पांडेय : कलम और कागज़ इस दुनिया में सबसे अच्छे साथी होते है। वो ना ही कोई शिकायत करते है और ना ही कोई माँग । प्रेम , प्रसन्नता , दुःख , दर्द अपनी उन सारी भावनाओं को हम लेखन के माध्यम से बड़ी ही आसानी से अभिव्यक्त कर पाते हैं, लेखन हमारे जीवन का वो हिस्सा है जो हमे अपने विचारो और भावनाओ को सही तरीके से व्यक्त करने का मौका प्रदान करती है। यह एक ज़रिया है जो हमारी सोच को नई दिशा देता है ।लेखन एक ऐसी प्रक्रिया है जो सही और ग़लत का अहसास कराती है। काफ़ी हद तक हमारे अकेलापन को दूर करता है लेखन , यह हमें हमारी शख़्सियत से अवगत कराता है ।बहुत ज़रूरी है क़ि हम सभी लेखन के महत्व को समझे ,और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाये । लेखन हमे संतुष्टि का आभास करता है, और जीवन में खुश रहने का मौका देता है !!
सविता सिंह सैवी : कवयित्री बनने के बाद आपने अपने जीवन में क्या परिवर्तन महसूस किया है ?
पूनम पांडेय : कवयित्री बनने के बाद मैंने महसूस किया कि जैसे मेरे जीवन को शब्दों के पँख मिल गए हैं, जिनके सहारे मैं अपने आपको उन्मुक्त हो नीले अंबर में उड़ता देख पाती हूँ, मैं अपनी भावनाओं को, अपने मन की व्यथा को अपनी ख्वाहिशों को शब्दों में पिरो पाती हूँ, । और निश्चित रूप से मेरे जीवन में समझ और सूझ बुझ के साथ मेरा अनुभव भी काफ़ी बढ़ा है । परिस्थितियों को देखने का मेरा नज़रिया बदला है !!
सविता सिंह सैवी : अपने पाठकों के लिए आप क्या संदेश देना चाहती हैं ?
पूनम पांडेय : मेरा मानना है कि लिखने पढ़ने और सीखने की कोई उम्र नही होती। कठिन परिश्रम करें ।और साथ ही ईश्वर पर विश्वास बनायें रखे । असफलताओं से कभी न हारें ।एक न एक दिन सफलता खुद ब खुद आपके कदम चूमेगी ।लेखन को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनायें । ये हमें संतुष्टि का आभास कराता है । और जीवन में ख़ुश रहने का मौक़ा देता है । और अंत में एक बात और कहना चाहूँगी क़ि अगर लेखन पसंद आए तो हौसला बढ़ाइए , और न आए तो आलोचना भी करिए । कोई भी अच्छा लेखक आलोचना से घबराता नही है । जितनी आलोचना होगी लेखन और निखरेगा..!