देश एक बार जमातियों के कारण कोरोना का भयंकर दंश झेल चुका है। अब दारूल उलूम ने एक ऐसा फतवा जारी कर दिया है जिससे देश और तेजी के कोरोना के मुंह की ओर जा सकता है। दारूम उलूम ने कोरोना मृतकों से संबंध में फतवा जारी करते हुए कहा कि कोरोना मृतकों का अछूत न माना जाये। फतवे के अनुसार बाॅडी बैग को ताबूत मानते हुए उसी में मृतक को अंतिम स्नान की बात कही गयी है। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सार्वजनिक कब्रिस्तान में ही उन्हें दफन करने की बात कही गई है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब सरकार कोरोना को लेकर सभी जरूरी कदम उठा रही है। सरकार द्वारा जारी डाक्युमेंट में मृतक को नहलाने और चूमने जैसे धार्मिक मान्यताओं की मनाही की बात कही गयी है। ऐसे में धर्म की दुकान चलाने वालों को ऐसे फतवे देने की क्या जरूरत ? क्या वे खुद को भारतीय संविधान और सरकार , अदालतों से ज्यादा बड़ा मानते है ? ऐसे में अगर जनाजे के दौरान गलती से कोरोना अन्य लोगों में फैल जाता है तो इसका जिम्मेंदार कौन होगा ? क्या ऐसे हादसों से अगर कोरोना फैलते है तो उसमे होने वाले खर्चे की भरपाई क्या ये फतवे जारी करने वाले करेंगे? और सबसे बड़ा सवाल यह कि ऐसे समय में भी सरकार धृतराष्ट्र बन कर क्यो बैठी है, ऐसे लोगों पर कठोर कार्यवाही क्यों नहीं की जाती।
पढ़े आंतिम संस्कार को लेकर सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन- https://www.mohfw.gov.in/pdf/1584423700568_COVID19GuidelinesonDeadbodymanagement.pdf