केंद्रीय मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने विपक्षी राजनीतिक दलों पर बरसते हुए आज यहां कहा कि विपक्ष वोट बैंक के लिए जम्मू कश्मीर में जनसंख्या संरचना को लेकर हौआ खड़ा कर रहा है क्योंकि अब यह साफ है कि नई अधिवास नियम अधिसूचना से विरोधियों का बहिष्कार कर कुछ सीमित वोट बैंक के सहारे फलने- फूलने का मौका अब जारी नहीं रहेगा जैसा कि पहले किया जाता था।
जम्मू कश्मीर के लिए नई अधिवास कानून पर एक निजी समाचार चैनल के साथ साक्षात्कार के दौरान डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में कुछ परिवारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी अपना आधिपत्य बनाए रखने में सफलता पाई है। इसके लिए उन परिवारों ने सिर्फ उन्हीं लोगों को अपनी वोट सूची में शामिल किया जिनके वोट बैंक को अपने पक्ष में करने में वे सक्षम थे। बाकी उन लोगों का बहिष्कार करते थे जिनके बारे में वे सोचते थे कि वे उनकी चाल में नहीं फंसेंगे और अपनी मर्जी से वोट करेंगे। उन्होंने कहा कि यह साजिश उस हद तक जारी रही कि उन्होंने बाहर से आए लोगों को न सिर्फ नागरिकता लेने या वोट का अधिकार हासिल करने से वंचित रखा बल्कि 1947 से ही जम्मू एवं कश्मीर में आकर बसे बड़ी संख्या में लोगों को वोट का अधिकार लेने ही नहीं दिया और यह स्वत: सिद्ध तर्क देते रहे कि ये लोग नागरिकता या वोट का अधिकार पाने के पात्र ही नहीं है क्योंकि वे तब के पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थी हैं।
डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने तथाकथित जनसंख्या संरचना के पैरोकारों का कड़े शब्दों में प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि जनसंख्या संरचना पर बोलने का उनके पास क्या नैतिकता है जिन्होंने कश्मीरी पंडितों के पूरे समाज के कश्मीर घाटी से पलायन पर चुप्पी साधते हुए जनसंख्या संरचना पर खुद सबसे बड़ा हमला किया है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जो कश्मीर की समग्र संस्कृति की शपथ लेते थे खुद वही लोग उस समग्र संस्कृति की हत्या के दोषी हैं जो घाटी में कश्मीरी पंडित समाज की उपस्थिति से ही जिंदा था।
डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने पूर्वानुमान करते हुए कहा कि विपक्ष अधिवास कानून का विरोध कर सकता है लेकिन उनके बच्चे दिल की गहराई से इस बदलाव का समर्थन करेंगे और लंबी अवधि में वे खुद को भाग्यवान समझेंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास हमें सही ठहराएगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए इस फैसले की विभिन्न खासियतों का जिक्र करते हुए डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह न सिर्फ अमानवीय है बल्कि संवैधानिक औचित्य और बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ भी है कि अपने जीवन का 30 से 35 वर्ष जम्मू कश्मीर के लोगों की सेवा करने में लगाने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद निर्दयता से कह दिया जाए कि अपना सामान उठाओ और यहां से जाओ और रहने के लिए जम्मू-कश्मीर छोड़कर भारत में कहीं भी अपना नया ठिकाना तलाश करो। उन्होंने कहा कि विडंबना यह है कि यहां ऐसा उस वक्त होता था जब भारत के कुछ राज्य इन अधिकारियों को न सिर्फ आवासीय सुविधा देते थे बल्कि सस्ते दाम पर प्लाॅट भी उपलब्ध कराते थे।
उन्होंने कहा कि उन बच्चों की स्थिति तो और भी बुरी होती थी जो जम्मू कश्मीर में जन्मे, पले-बढ़े और स्कूल की पढ़ाई भी पूरी की लेकिन बाद में उच्च शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन के लिए वे आवेदन ही नहीं कर सकते थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों और अधिवास अधिसूचना के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कुप्रबंध और विषमता है जिसे दुरुस्त करने में 70 साल का इंतजार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि शायद यह भगवान की इच्छा थी कि प्रधानमंत्री के रूप में केवल नरेंद्र मोदी ही उद्धार का यह महान कार्य पूरा करें।