IIT Kanpur ने पारंपरिक शिल्प को नवाचार और सजृनात्मकता के साथ पुनर्जीवित करने के लिए कला ग्राम डिजाइन विकास केंद्र का शुभारंभ किया
IIT Kanpur के रणजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र (RSK) ने एक डिज़ाइन डेवलपमेंट सेंटर, कला ग्राम की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य नवाचार के माध्यम से पारंपरिक शिल्प को संरक्षित और पुनर्जीवित करना है। यह केंद्र कारीगरों के लिए नई सामग्री, तकनीक और बाज़ार के रुझानों का पता लगाने के लिए एक केंद्र के रूप में काम करेगा, जो उत्पादों को सह-निर्माण करने के लिए शीर्ष संस्थानों के युवा डिजाइनरों के साथ सहयोग को बढ़ावा देगा।
केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर बोलते हुए, प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल, निदेशक IIT Kanpur ने कहा, “रजीत सिंह रोज़ी शिक्षा केंद्र में कला ग्राम का शुभारंभ पारंपरिक कारीगरों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आईआईटी कानपुर के संकाय और बाहरी विशेषज्ञों को एक साथ लाकर, हमारा उद्देश्य ग्रामीण कारीगरों के शिल्प कौशल को बढ़ाना और उनके उत्पादों को अधिक मूल्यवान बनाना है।”
इस समारोह में अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे, जिनमें डीन ऑफ रिसोर्सेज एण्ड अलम्नाइ प्रोफेसर अमेय करकरे, डिजाइन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सत्यकी रॉय, डिजाइन परियोजना के सह-पीआई प्रोफेसर सुधांशु एस सिंह, पीआईसी टेक्नोपार्क@आईआईटीके (Technopark@IITK) के प्रोफेसर अमरेंद्र के सिंह और मैटेरियल साइंस एवं इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कल्लोल मंडल शामिल थे।
आरएसके (RSK) परियोजना के प्रधान अन्वेषक प्रो. संदीप संगल ने आरएसके के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि: बच्चों को मुफ्त, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना और ग्रामीण युवाओं को रोजगार योग्य कौशल प्रदान करना हमारा मकसद है । उन्होंने कहा, “पिछले तीन वर्षों में, हमने 1,000 से अधिक ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षित किया है, और हमारा लक्ष्य उन्हें अपनी खुद की उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने और नौकरी सृजक बनने के लिए सशक्त बनाना है।”
यह केंद्र शुरू में बिठूर की मिट्टी के बर्तन, कालपी के हस्तनिर्मित कागज और कानपुर के घरेलू सामान पर ध्यान केंद्रित करेगा। आरएसके की परियोजना कार्यकारी अधिकारी रीता सिंह ने कहा, “हमारा लक्ष्य नए डिजाइन को प्रस्तुत करके इन शिल्पों को पुनर्जीवित करना, कारीगरों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना तथा उनके उत्पादों में नया आकर्षण लाना है।”
कला ग्राम की कोऑर्डिनेटर डॉ. मोनिका ठाकुर ने बताया कि यह केंद्र कारीगरों को नए औजारों और तकनीकों का प्रयोग करने, बाजार के रुझान जानने और पैकेजिंग रणनीतियों को सीखने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि डिजाइन संस्थानों और स्टूडियो के साथ सहयोग से कारीगरों के उत्पादों को नई पहचान मिलने में सुविधा होगी।
फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल के भारत सहयोगी (IPM) के सीएसआर फंड द्वारा समर्थित इस पहल का महिला सशक्तिकरण पर पहले से ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पीएमआई में विदेश मामलों की निदेशक मैडम अनुश्री लक्ष्मीनारायण ने स्थानीय कारीगरों को सशक्त बनाने में इस परियोजना के प्रयासों की सराहना की।
आईआईटी कानपुर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए नवाचार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। कला ग्राम जैसी पहलों के माध्यम से, संस्थान न केवल ग्रामीण कारीगरों की आजीविका को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है, बल्कि पारंपरिक शिल्प और समकालीन डिजाइन के बीच की खाई को भी पाट रहा है। यह परियोजना शिक्षा और कौशल निर्माण के माध्यम से सतत विकास और सशक्तिकरण में योगदान देने के आईआईटी कानपुर के मिशन को दर्शाती है।