तेजी से बदलती जीवनशैली के बीच रोज नई तरह की बीमारियों का चलन आम होता जा रहा है, ऐसे में जागरूकता के अभाव में कुछ बीमारियों पूरी जिंदगी के लिए अभिशाप भी बन जाती है। ऐसी ही एक बीमारी है ROP (Retinopathy of Prematurity) जो 34 सप्ताह से कम समय में पैदा हुए बच्चों में हो सकती है। जिससे बच्चे के आंखों की रोशनी हमेशा के लिए खो सकती है।
आज Retinopathy of Prematurity दिवस के मौके पर आज कानपुर के सुप्रसिद्ध ASG Super Speciality Eye hospital में ROP विशेषज्ञ डॉ. सौरभ मिस्त्री ने संगोष्ठी के दौरान जानकारी देते हुए बताया कि सामान्यतः नवजात शिशुओं का जन्म 40 सप्ताह के करीब होता है लेकिन यही बच्चे अगर 28 से 34 सप्ताह के मध्य जन्म लेते हैं और उनका वजन यदि २ किलो से कम है तो उनका रेटीना समुचित रूप से विकसित नहीं हो पाता है। यही समस्या बच्चों में रेटिनोपैथी का कारण बनती है और बच्चों की दृष्टि को बाधित करती है। डॉ सौरभ ने बताया कि इसकी जांच जन्म के ३० दिन के भीतर अवश्य हो जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें भविष्य में देखने की दिक्कत हो सकती है।
ROP दिवस के मौके पर आज ASG Super Speciality Eye hospital में ROP का उपचार प्राप्त कर चुके सभी मरीजों को चिकित्सालय में बुलाकर नेत्र परीक्षण किया गया एवम् ROP विशेषज्ञ डॉ. सौरभ मिस्त्री ने आए हुए सभी मरीजों को निशुल्क नेत्र परीक्षण एवं परामर्श का अवसर प्रदान किया।
बच्चों के आंखों की रोशनी चुरा रहा मोबाइल
इस मौके पर डा0 दिपाली वेलानी में जानकारी देते हुए बताया कि आज कल बच्चों को मोबाइल दे देना आम बात हो चुकी है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2 वर्ष तक के बच्चों की स्क्रीन टाइन शून्य होना चाहिए। जबकि 2 साल से 5 साल तक के बच्चे कमरे में पर्याप्त रोशनी के बीच 1 घंटे तक टीवी देख सकते है।
उन्होंने बताया कि आजकल ज्यादा मोबाइल देखने की वजह से छोटी उम्र में ही बच्चों को चश्में लग रहे है, और ऐसे मामले बढ़ते भी जा रहे है।
इस अवसर पर डॉ. अतुल धवन (रेटीना विशेषज्ञ) डॉ. दीपाली वेलानी(कॉर्निया एवं मोतियाबिंद विशेषज्ञ) डॉ सौरभ मिस्त्री(मोतियाबिंद, यूविया, ग्लूकोमा एवं ROP विशेषज्ञ), डॉ मो. सईद(मोतियाबिंद एवम् ग्लूकोमा विशेषज्ञ) उपलब्ध रहे।