श्रावस्ती :- विकास दुबे ने जो कर्म किया उसका परिणाम यही होना था।लेकिन इस प्रकरण से जो सबसे बड़ा सवाल निकल कर आ रहा है वो है। कि क्या ब्राह्मण समुदाय के लोगों को ही निशाना बनाया जा रहा है ,क्या सिर्फ ब्राह्मण समुदाय के लोग ही माफिया और गुंडे है दूसरे समुदाय के लोग नही हैं ? लेख थोड़ा लंबा है लेकिन पूरा पढ़ने की कोशिश करें।
बरसों का भगोड़ा 3 लाख का इनामी माफिया रहा ब्रजेश सिंह बनारस जेल में अय्याशी कर रहा है।गुंडई के दम पर उसका गैंग प्रदेश के बड़े-२ ठेके हथिया रहा है। माफिया बृजेश सिंह का ऐसा कौन सा कारोबार है कि उसकी पत्नी 10-10 लग्जरी गाड़ियों के साथ घूमती है।
70 के दशक में इलाहाबाद स्टेशन पर से तांगा चलाने वाले फिरोज का लड़का माफिया अतीक अहमद का ऐसा कौन सा कारोबार है कि वह 8 करोड़ की हमर गाड़ी से घूमता है।मुन्ना बजरंगी के सोनभद्र में 100 करोड़ के बालू ठेके में 30 करोड़ की हिस्सेदारी मांगे जाने पर कैसरगंज भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने बृजेश सिंह पर दबाव बनाकर मुन्ना को हिस्सेदारी देने की बात कही।
क्योंकि मुन्ना को मुख्तार अंसारी ने अपने शूटरों के साथ उसे एक बार सांसद की हत्या के लिए भेजा था, जिसे उसने सांसद को बताकर उनकी जान बचा ली थी , उस एहसान का कर्जा सांसद ने ठेके के जरिये उतार दिया था , उधर जौनपुर के माफिया सांसद धनंजय सिंह मुन्ना की जौनपुर की सियासत में बढ़ती सक्रियता और रंजिश से असहज महसूस कर रहे थे।
वही मुन्ना ने अपने आका मुख्तार अंसारी के आदेशों की लगातार अवहेलना की, और मुख्तार के आसामी व्यापारियों से उसकी वसूली से मुख्तार भी मुन्ना को अपने लिए खतरा समझ रहा था।उधर बृजेश की भी हरी झंडी मिलते ही उसकी मौत पर सियासी मुहर लग गयी।
चुलबुल सिंह, बृजेश के भाई 2 बार भाजपा से एमएलसी बनते हैं। बृजेश की पत्नी एमएलसी बनती है और बनारस जहां नरेंद्र मोदी जी सांसद हैं, देश के पीएम हैं, वहां से एक अपराधी एमएलसी है।चुलबुल सिंह की तेरहवी में राजा भैया, कुख्यात अपराधी विनीत सिंह, राजनाथ के पुत्र पंकज सिंह बृजेश के साथ उसके घर में फ़ोटो खिंचवाते हैं।
बसपा सरकार में अपने काले कारनामों की वजह से बार बार जेल यात्रा करने वाले राजा भैया।योगी सरकार में शान से जी रहे हैं। कभी नहीं सुना बृजेश सिंह, विनीत सिंह, कुण्टू सिंह, ब्रजभूषण शरण सिंह, अजय सिंह सिपाही, धनंजय सिंह, अभय सिंह, लल्लू यादव, डीपी यादव, राजा भैया, सुशील मूंछ, बदन सिंह बद्दो, त्रिभुवन सिंह, उदयभानु सिंह डॉक्टर, धुन्नी सिंह, अभिमन्यु यादव, अजीत सिंह के लड़के सनी सिंह, कुलदीप सेंगर, उमेश राय, अतीक, मुख्तार, अशरफ, खान मुबारक, बबलू श्रीवास्तव, सुल्तानपुर के माफिया ब्रदर्स चंद्रभद्र सिंह सोनू, यशभद्र सिंह मोनू, आदि- बहुत से नाम हैं।
इनकी काली कमाई, काले साम्राज्य, काले धन से अर्जित चल-अचल संपत्तियों, इनके रिश्तेदारों, साथियों, पर कठोर कार्यवाही हुई हो, एनकाउंटर हुआ हो, घर गिरा दिया गया हो, बच्चों का उत्पीड़न किया गया हो। लेकिन सरकार बनते ही पं. हरिशंकर तिवारी के घर हाता में 35 वर्षों बाद पुलिस की कांपती हुई।
टांगों से हाता में घुसने की हिम्मत हुई।जिन अपराधियों की तलाश में पुलिस हाता में घुसी थी, वह जेल में थे। यह सरकार की जातीय कुंठा ही थी जिसमे सरकार की खूब किरकिरी हुई,
80 वर्ष के बुजुर्ग से सरकार को खतरा था ?
क्या यह महज संयोग है कि 200 ब्राह्मणों की हत्याएं इसी सरकार में हो चुकी हैं।
17% आबादी वाले ब्राह्मण समाज को राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के कूड़ेदान में फेंक रखा है।जिस प्रदेश में आजादी के बाद से लगातार ब्राह्मण मुख्यमंत्री होते रहे, आज वहां 1989 के बाद कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना। 9%यादव 10%ठाकुर सीएम बन रहे हैं।
“जिस कौम की राजनीतिक शक्ति खत्म हो जाती है, वह इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दी जाती है।”
अगर योगी सरकार जातिवादी नहीं है तो ऊपर लिखे नामों पर भी ऐसी ही कार्यवाहियां करके दिखाए।
80,000 ब्राह्मण वोटरों वाली सरेनी विधानसभा से कोई भी पार्टी ब्राह्मणों को टिकट नहीं देती।4 ठाकुर लड़ते हैं, वही जीतते हैं। ब्राह्मण पिछलग्गू बन झण्डा उठाता है और चुनाव के बाद झंडे से डंडा निकाल पूरे 5 साल डंडा उसी पर आजमाया जाता है।
गैरत हमारी मर चुकी है, आत्मसम्मान गिरवी रखकर, सारी राष्ट्रीय सोच, राष्ट्रीय मुद्दों, राष्ट्रीय नेताओं को फॉलो करने का ठेका आंख मूंद कर ब्राह्मणों ने ही ले रखा है।क्षेत्र की व जिले की राजनीति से साफ हो चुके ब्राह्मण समाज को अभी तक यह समझ नहीं आया कि सम्मान व सुरक्षा के साथ जीने के लिए अपना क्षेत्रीय विधायक होना भी जरूरी है।
भगवान सदैव दूसरे को बुद्धि बाँटने वाली इस ब्राह्मण कौम की 2022 से पहले बुध्दि खोलने की कृपा करना।एक ऐसे अंधे युग में जब पिछड़ी व दलित जातियां इस 21वीं आधुनिक सदी में सियार की माफिक एकमुश्त वोटबैंक बनकर अपनी पार्टी व नेता को पहचानकर हमेशा ईवीएम बटन पर मछली की आंख की तरह निशाना साधकर सही बटन दबाते हैं।
और सत्ता हासिल कर अपने मनमाफिक कानून व योजनाएं बनवाते हैं, वहीं ब्राह्मण समाज राजनैतिक बियाबान में भटकता हुआ, अपनी-2 अलग-२ मृग मरीचकाओं में गुम होइ अलग-२बटन दबाते हुए खुद पूरे 5 साल अपने उत्पीड़न का आत्मघाती सौदा कर लेता है।
जो कौम अपने इतिहास से नहीं सीखती वह मिट जाती है।
रिपोर्ट पंकज मिश्रा