विश्व संकट से जूझ रहा है। देश में चौथे लॉक डॉउन को लागू कर दिया गया है।मज़दूरों के विस्थापन के साथ साथ अब इस महामारी का प्रसार तेज़ी हो रहा है। समय के साथ अब इस महामारी ने विकराल स्वरूप धारण कर लिया है। मज़दूरों के वापस लौटने के कारण यह महामारी गांवों की तरफ़ शिफ्ट हो गई है।
यहां मेरा उद्देश्य मज़दूरों को गुनहगार बताने का नहीं है। ये एक राष्ट्र के तौर पर हम सबकी सामूहिक जिम्मेवारी थी कि हम सब इस संकट की घड़ी में देश और देश की सरकार का साथ दें। देश में पहला लॉक डॉउन लागू किया गया। ट्रेन बन्द, हवाई सेवा बन्द, पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साथ साथ पूरा देश घर में बन्द। लेकिन हुआ क्या? हम अपनी कारगुज़ारी से बाज़ नहीं आए। कभी थाली पीटने के लिए ढोल नगाड़े के साथ सड़कों पर उतर गए तो कभी दिवाली से पहले दीपोत्सव और बमबाजी हवाबाजी में लग गए! पहला लॉक डॉउन हम सही से काट लेते तो शायद आज तस्वीर बेहतर होती! लेकिन नहीं,हम तो हिन्दुस्तानी है। तमाशा हुआ नहीं कि बाहर भीड़ लगा देते हैं। अंग्रेजों ने ठीक ही कहा था हमें – सपेरों का देश।
मज़दूरों की अपनी अलग समस्या थी। बिना काम के बड़े शहरों में रहना और खाना उनके लिए संभव नहीं था। वहां भूख के आगे महामारी हार गई थी। मज़दूरों ने सरकार के लॉक डॉउन को धता बताते हुए घर की तरफ़ चलना शुरू कर दिया।यात्राएं हमेशा से कठिन होती है किन्तु ये विस्थापन था! मज़दूरों का विस्थापन। क्या बूढ़े बुजुर्ग, क्या नौजवान, और क्या बच्चे! धूप से सुलग रही सड़कों ने किसी के भी पांवों को नहीं बख्शा! पांवों के छालों ने मनुष्यता से प्रश्न किया! जवाब अनुत्तरित रहा। उस दिन रेलवे ट्रैक पर मज़दूर नहीं; ईश्वर कटा था!
क्या सरकार को इसलिए नहीं दोष दें कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में सभी मज़दूरों तक मदद पहुंच पाना मुमकिन नहीं? पर क्यों नहीं? अगर आप अपने ही नागरिक तक पहुंच पाने में असक्षम हैं तो फ़िर आप एक असफल सरकार हैं। मुझे याद आता है देश के वर्तमान गृह मंत्री श्री अमित शाह का इन्टरव्यू। यूपी में विधानसभा का चुनाव चल रहा था। इंडिया टुडे के पत्रकार राहुल कंवल ने चुनाव में जीत को लेकर कुछ सवाल किए। जिसपर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष ने अपनी जीत का यकीन दिलाते हुए कहा कि राहुल जी मुझे तो इतना पता है कि फलाने बूथ से कितने वोट मिलेंगे! एक रणनीतिकार के तौर पर उत्तर बेहद प्रभावशाली था। कमाल का बूथ मैनेजमेंट। हर गांव, हर मोहल्ला, हर घर तक पहुंच संगठन की कुशलता और शक्ति का परिचय देती है। वही अमित शाह आज देश का गृह मंत्री हैं लेकिन अफ़सोस की मज़दूरों तक पहुंच नहीं सके!
देश में चौथा लॉक डॉउन चल रहा है। अभी भी संभल जाने का समय शेष है। इस लॉक डॉउन का पालन बेहद ही जरूरी है। कुछ दिन और हम अगर अपने आप को नियंत्रित कर ले तो फ़िर इस विपदा पर नियंत्रण किया जा सकता है। अनावश्यक बाहर नहीं जाकर हम सब देश और अपने आप को बचा सकते हैं। काम से बाहर निकले तो मुंह पर मास्क और हाथ में मेडिकल दस्ताने जरूर पहनें। बाहर से घर आने पर तुरन्त स्नान कर लें। पहने हुए कपड़ों को गर्म पानी से धोएं। हाथ को नियमित समय पर सेनिटाइजर से धोते रहें। ये समय खुद को बचाने का है। राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त जी की कविता की एक पंक्ति याद आ रही है – नर हो न निराश करो मन को। खुद को बचाकर ही हम देश और दुनिया को बचा सकते हैं। ये समय जीवन बचाने का है। इस समय जीवन बचाना ही परम धर्म है।
दीपक सिंह