उक्त शीर्षक पढ़कर साढ़े तीन सौ परसेंट आपके दिमाग में इस ख्याल ने जन्म लिया होगा “ये किस पहली फेल इंसान ने लिख डाला, इसे ये भी नहीं पता कि मुख्यमंत्री किसी राज्य का होता है ना कि देश का”?…. तो भइया इस बार आप गलत पकड़े हैं दरअसल ये हेडलाइन लेखक ने पूरे होशोहवास में लिखी है पूरी ऊर्जा के साथ… तो अब बताते हैं कि ऐसी अनपढ़ टाइप की हेडलाइन आखिर लिखी क्यों गई… इस तरह की हेडलाइन का विचार लेखक यानि मेरे दिमाग में तब आया जब मैंने कई अखबारों के फ्रंट पेज पर चमचमाता हुआ दिल्ली सरकार का खर्चीला विज्ञापन देखा…विज्ञापन का विस्मयादिबोधक शीर्षक था “ऐतिहासिक”।
तो पहले बताते हैं आपको पूरा माजरा…दरअसल इस बार दिल्ली के सरकारी स्कूलों का बारहवीं का रिजल्ट आया है करीब 98 प्रतिशत। सुनने के बाद पढ़कर मुझे भी उतना ही अच्छा लगा जितना अभी आपको लग रहा होगा…लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसे एक तरह से राष्ट्रीय पर्व के रूप में पेश किया और इस कथित दिल्ली सरकार की उपलब्धि का तबला बजाना शुरु कर दिया…मुझे किसी भी तरह से बोर्ड के इस रिजल्ट में केजरीवाल सरकार को अंश मात्र भी योगदान नहीं दिख रहा वो इसलिए कि अगर दिल्ली के सरकारी स्कूलों की हालत इतनी ही अच्छी है तो क्या किसी अधिकारी या किसी मंत्री-संतरी के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते मिलेंगे आपके?
नहीं बिल्कुल नहीं… अगर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था इतनी ही चौबंद होती तो शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे उप मुख्यमंत्री पटपड़गंज से हारते हारते नहीं जीतते…चलो एक मिनट के लिए मान भी लिया कि इस रिजल्ट में दिल्ली सरकार का योगदान है तो भी एक बात मेरे समझ से परे है कि दिल्ली बोर्ड के ऐतिहासिक रिजल्ट को भारतवर्ष की उपलब्धि के रूप में दिखाने की क्या जरूरत और अगर नहीं तो देश के करीब-करीब हर बड़े अखबार में ये विज्ञापन देने की क्या जरूरत?
अगर आप भूले नहीं होंगे तो कुछ दिन पहले ही केजरीवाल कोरोना से लड़ने के लिए बजट ना होने का रोना रो रहे थे… केजरीवाल ने केंद्र से बजट देने की गुहार लगाई थी साथ ही कुछ आरोप भी लगाए थे… तो सवाल ये कि अगर तब केजरीवाल के पास कोरोना से त्राहिमाम करती दिल्ली को बचाने के लिए पैसे नहीं थे तो फिर देशभर के अखबारों में दिल्ली बोर्ड के परिणाम को ऐतिहासिक ढिंढोरा पीटने के लिए पैसे कहां से आए?
या तो केजरीवाल तब बजट ना होने का सफेद झूठ बोल रहे थे या फिर दिल्ली बचाने से ज्यादा केजरीवाल को दिल्ली का ढिंढोरा पीटना ज्यादा जरूरी लग रहा है…बच्चा-बच्चा जानता है कि कोरोना से लड़ने में दिल्ली की केजरीवाल सरकारी बुरी तरह से फेल साबित हुई है….वो तो शुक्र है केंद्र सरकार का जो कोरोना से जंग में दिल्लीवालों के लिए ढाल बनकर आए वरना केजरीवाल ने कोरोना को ठीक उसी तरह से छूट देने का मन बना लिया था जैसे फ्लिपकार्ट पर तिमाही वाले डिस्काउंट पर छूट…. तो कुल मिलाकर मेरी इस गीता का सार ये है कि केजरीवाल दिल्ली की किसी उपलब्धि को कुछ इस तरह से क्यों पेश करते जैसे इससे पहले कभी देश में ऐसा कुछ हुआ ही ना हो…
कोई भी सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान अपने सीमित क्षेत्र तक करती है तो फिर केजरवाल क्यों इस तरह से उतावले बने हुए हैं…अब आप ही मुझे बताइए कि मेरा शीर्षक केजरीवाल के इस मूर्ख और हास्यास्पद रवैये के अनुकूल था या नहीं?
अवनीश मिश्रा (इंडिया टीवी)