भारत की सोलर मैन्युफैक्चरिंग में तेजी, लेकिन आधी क्षमता अब भी बंद—IEEFA–JMK रिपोर्ट का बड़ा खुलासा

भारत की सोलर मैन्युफैक्चरिंग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन PLI स्कीम के तहत स्थापित क्षमता का बड़ा हिस्सा अभी ऑपरेशनल नहीं हो पाया है। IEEFA–JMK Research की रिपोर्ट बताती है कि निवेश, उत्पादन और क्षमता उपयोग में बड़ा अंतर बना हुआ है।

admin
By
admin
4 Min Read
Highlights
  • IEEFA–JMK Research की रिपोर्ट में भारत की सोलर मैन्युफैक्चरिंग की मिश्रित तस्वीर सामने आई।
  • polysilicon और wafer उत्पादन में भारत ने पहली बार उल्लेखनीय क्षमता खड़ी की।
  • PLI स्कीम के बावजूद घोषित क्षमता का केवल 50% ही ऑपरेशनल।
  • मॉड्यूल क्षमता: 65 GW घोषित, सिर्फ 31 GW चालू।
  • निवेश लक्ष्य 94,000 करोड़, वास्तविक निवेश 48,120 करोड़ ही।
  • समय पर विस्तार न हुआ तो 41,834 करोड़ रुपये तक नुकसान संभव।
  • सबसे बड़ी चुनौती: upstream निर्भरता, ग्लोबल प्राइस वॉर, तकनीकी कमी।
  • भारत के पास वैश्विक सोलर सप्लाई चेन में बड़ा अवसर।
  • रिपोर्ट: PLI ने शुरुआत कर दी, अब निष्पादन पर फोकस जरूरी।

भारत की सोलर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री इन दिनों एक दिलचस्प विरोधाभास का सामना कर रही है—एक तरफ सफलता का जश्न और दूसरी ओर अधूरे वादों की चिंता। IEEFA (Institute for Energy Economics and Financial Analysis) और JMK Research की नई संयुक्त रिपोर्ट ने इस मिश्रित तस्वीर को स्पष्ट रूप से सामने रखा है।

Contents

रिपोर्ट बताती है कि भारत ने पहली बार polysilicon और wafer जैसे कठिन व तकनीकी रूप से जटिल क्षेत्रों में वास्तविक उत्पादन क्षमता स्थापित कर ली है। यह एक ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि सोलर वैल्यू चेन में upstream प्रगति अब तक सबसे मुश्किल मानी जाती रही है।

PLI स्कीम ने बनाई रफ्तार, पर जमीन पर कई दिक्कतें

सरकार की Production Linked Incentive (PLI) योजना ने सोलर सेक्टर में नई ऊर्जा जरूर भरी है।

  • 2021 में 4,500 करोड़ रुपये
  • 2022 में 19,500 करोड़ रुपये
  • कुल 24,000 करोड़ का पैकेज

इस निवेश ने उद्योग को लंबे समय से चली आ रही प्रोत्साहन की कमी पूरी करने में मदद की।

लेकिन रिपोर्ट के अनुसार PLI में दावे की गई क्षमता का केवल आधा हिस्सा ही वास्तव में सक्रिय है, जिससे सेक्टर की क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा।

जून 2025 तक का ग्राउंड डेटा

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में—

  • 3.3 GW polysilicon
  • 5.3 GW wafer
  • 29 GW solar cell
  • 120 GW solar module क्षमता स्थापित हो चुकी है।

यह प्रगति upstream वैल्यू चेन में उल्लेखनीय है, लेकिन संचालन के स्तर पर तस्वीर अधूरी है।

65 GW मॉड्यूल क्षमता में से केवल 31 GW ही सक्रिय

IEEFA–JMK रिपोर्ट यह भी बताती है कि घोषित 65 GW मॉड्यूल निर्माण क्षमता के मुकाबले सिर्फ 31 GW ही चालू है।
निवेश भी लक्ष्य से काफी कम है—

  • अनुमानित लक्ष्य: 94,000 करोड़ रुपये
  • वास्तविक निवेश: 48,120 करोड़ रुपये

अंतर इतना बड़ा है कि इस रफ्तार से उत्पादन क्षमता और बाज़ार मांग के बीच तालमेल बिगड़ सकता है।

41,834 करोड़ रुपये तक का संभावित नुकसान

अगर विस्तार समय पर नहीं हुआ, तो रिपोर्ट के अनुसार कंपनियों को 41,834 करोड़ रुपये तक का वित्तीय नुकसान हो सकता है।
यह चेतावनी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक सोलर बाजार तेज़ी से तकनीक बदल रहा है और प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है।

सबसे बड़ी चुनौती—Upstream निर्भरता और ग्लोबल प्राइस वॉर

रिपोर्ट के लेखकों—

विभूति गर्ग (IEEFA), प्रभाकर शर्मा, चिराग तेवानी और अमन गुप्ता (JMK Research)—के अनुसार भारत अभी भी polysilicon और wafer जैसे critical components के लिए भारी मात्रा में आयात पर निर्भर है।

ग्लोबल बाजार में तेज गिरती कीमतें भारतीय मैन्युफैक्चरर्स को लागत-प्रतिस्पर्धा में कठिनाइयाँ दे रही हैं।
इसके अलावा—

  • उच्च तकनीकी उपकरणों की कमी
  • skilled manpower की कमी
  • तकनीकी अपग्रेडेशन
    कुल मिलाकर उद्योग को और जटिल बनाते हैं।

भारत के पास बड़ा अवसर, लेकिन चुनौती भी उतनी ही बड़ी

IEEFA–JMK का आकलन है कि भारत ने सही दिशा पकड़ ली है।

दुनिया की सोलर सप्लाई चेन जिस तेजी से बदल रही है, उसमें भारत—

एक वैश्विक खिलाड़ी बन सकता है
लेकिन तभी जब—

  • upstream
  • downstream
  • तकनीक
  • वित्त
  • नीति

सभी स्तंभ एक साथ मजबूत किए जाएँ।

रिपोर्ट का निष्कर्ष—PLI ने दरवाज़ा खोला, लेकिन पूरा कमरा रोशन करने का काम बाकी

रिपोर्ट स्पष्ट रूप से कहती है कि PLI स्कीम ने भारत को मजबूत स्थिति में खड़ा किया है, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग को आत्मनिर्भर और globally competitive बनाने के लिए अभी काफी काम किया जाना बाकी है।

Share This Article