कानपुर में मनरेगा घोटाला: 30 लाख की बंदरबांट का खुलासा, ग्राम प्रधान समेत 15 लोग दोषी

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Highlights
  • सैबसू गांव में मनरेगा के तहत 30 लाख की वित्तीय गड़बड़ी उजागर।
  • परियोजना निदेशक की टीम ने 15 लोगों को दोषी ठहराया।
  • बीते 3 वर्षों में मनरेगा कार्यों में गंभीर अनियमितताएँ।
  • 17 विकास कार्य केवल काग़ज़ों पर पूरे दिखाए गए।
  • 98 मजदूरों की फर्जी हाजिरी लगाकर करोड़ों की निकासी।
  • ग्राम प्रधान, सचिव और तकनीकी सहायक पर रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश।
  • मामले की जांच अभी अन्य गांवों में भी जारी।

कानपुर के सैबसू गांव में मनरेगा योजना के अंतर्गत बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ी का मामला सामने आया है। ग्रामीण राहुल तिवारी पुत्र राजेंद्र प्रसाद की शिकायत पर हुई जांच में लगभग 30 लाख रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ है। मामले की जांच मनरेगा लोकपाल के तहत की गई, जिसकी रिपोर्ट गुरुवार को कमेटी द्वारा सौंप दी गई।

तीन सदस्यीय टीम की जांच में हुआ खुलासा

परियोजना निदेशक डीआरडीए आलोक कुमार सिंह की अगुवाई में बनी तीन सदस्यीय टीम ने निष्कर्ष दिया कि मनरेगा फंड में हुए लगभग 20 लाख रुपये के गबन में कुल 15 लोग दोषी हैं।
सभी दोषियों को वसूली की धनराशि जमा करने के आदेश जारी किए गए हैं।

साथ ही, मनरेगा अधिनियम के तहत ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सचिव और तकनीकी सहायक पर वित्तीय अनियमितताओं के लिए रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं।

3 साल में जमकर हुई बंदरबांट

जांच में पता चला कि पिछले तीन वर्षों में मनरेगा के तहत किए गए पक्के और कच्चे कार्यों में भारी गड़बड़ी की गई।
ग्रामीण राहुल तिवारी द्वारा शिकायत दर्ज कराने पर मामले को गंभीरता से लेते हुए उच्च स्तरीय जांच कमेटी बनाई गई, जिसने करीब 3 महीने तक जांच की और 15 लोगों को दोषी पाया।

कागज़ों पर बने 17 विकास कार्य

ग्रामीणों की शिकायत के अनुसार वर्ष 2024-25 और 2025-26 में ग्राम पंचायत में मनरेगा के तहत 17 विकास कार्य दिखाए गए थे, जिनमें चक रोड, खड़ंजा, इंटरलॉकिंग आदि शामिल थे।

जांच में पाया गया कि—

  • ये सभी कार्य सिर्फ कागज़ों पर ही पूरे दिखाए गए,
  • मजदूरों से पूछताछ में सामने आया कि प्रधान और सहयोगी मजदूरों के आधार कार्ड और बैंक पासबुक ले जाते थे,
  • मजदूरों के खातों में कोई भुगतान नहीं भेजा गया,
  • 98 मजदूरों की फर्जी हाजिरी लगाकर मस्टररोल तैयार किया गया,
  • मजदूरों ने बताया कि उन्होंने कोई काम नहीं किया, जबकि उनके नाम पर पैसा निकाला गया।

घोटाले का मामला जिला स्तरीय दिशा बैठक में भी उठाया गया था, जिसके बाद परियोजना अधिकारी आलोक कुमार, अधिशासी अभियंता (RED) और सहायक अभियंता लघु सिंचाई ने भी ग्राम प्रधान, सचिव और तकनीकी सहायक को दोषी माना था।
मामले की जांच अभी भी जारी है।

कई गांवों में चल रही है जांच

  • मनरेगा अनियमितताओं की जांच इन गांवों में भी जारी है—
  • रहीमपुर
  • करीमपुर
  • बराड़ा
  • विषधन गोध
  • ककवन ब्लॉक के अन्य गांव

बिल्हौर ब्लॉक में पिछले 3–4 वर्षों से स्थायी वीडीओ न होने के कारण मनरेगा में बड़े स्तर पर गड़बड़ियों की शिकायतें बढ़ी हैं। यहां मनरेगा के अधिकांश कार्य ठेकेदारी प्रथा के तहत कराए जाते हैं, जिसमें अधिकारियों की जमीनी जांच नहीं होती।

जानकारों का मानना है कि यदि जांच और गहराई से की गई तो कई और पंचायतें भी जांच के दायरे में आ सकती हैं।

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