एनर्जी सेक्टर में अब सबक़ एक है: भरोसा, विविधता और साझेदारी

दुनिया आज शायद अपने सबसे उलझे हुए दौर में है.
तेल और गैस के पुराने खतरे तो हैं ही, अब लिथियम, निकल, कोबाल्ट जैसे नए नाम भी उसी लिस्ट में शामिल हो गए हैं.
कहीं खदानों में खनिज की कमी है, तो कहीं देशों के बीच भरोसे की.
इसी बीच, इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की World Energy Outlook 2025 रिपोर्ट आई है, जो साफ़ कहती है, ऊर्जा की सुरक्षा अब सिर्फ़ रिसोर्स की नहीं, रिलेशनशिप की कहानी है.

ऊर्जा की भूख बढ़ रही है, और साथ में चिंता भी

रिपोर्ट बताती है कि आने वाले सालों में दुनिया की ऊर्जा ज़रूरतें और बढ़ेंगी.
घर में ठंडा-गरम करने से लेकर मोबाइल चार्ज करने, फैक्ट्रियों, ट्रेनों, डेटा सेंटर्स और अब AI तक, हर चीज़ बिजली मांग रही है.
अब तस्वीर ये है कि भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे देश ऊर्जा बाज़ार की धुरी बन रहे हैं.
एक वक़्त था जब चीन अकेले वैश्विक मांग का आधा हिस्सा तय करता था.
अब कोई अकेला खिलाड़ी नहीं है, बल्कि कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं मिलकर कहानी आगे बढ़ा रही हैं.

पुराने खतरे, नए रूप में

ऊर्जा सुरक्षा पहले तेल के टैंकरों और पाइपलाइनों तक सीमित थी.
अब हालात बदल गए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, 19 में से 20 प्रमुख ऊर्जा-संबंधी खनिजों की रिफाइनिंग सिर्फ़ एक ही देश में होती है, और उसका औसतन बाज़ार हिस्सा 70% तक है.
यानि अगर वहां कोई गड़बड़ी हुई, तो दुनिया भर के बैटरी, इलेक्ट्रिक व्हीकल और पावर ग्रिड ठप हो सकते हैं.
और यह केंद्रित निर्भरता बढ़ ही रही है, खासकर निकल और कोबाल्ट जैसे खनिजों में.
IEA कहता है, अगर सरकारों ने तुरंत कदम नहीं उठाए, तो यह ‘नई ऊर्जा राजनीति’ किसी भी समय झटका दे सकती है.

IEA के प्रमुख फ़ातिह बिय्रोल का कहना है,
“इतने सारे ईंधन और तकनीक एक साथ खतरे में हों, ऐसा दौर पहले कभी नहीं देखा गया. अब ज़रूरत है उसी गंभीरता की जैसी दुनिया ने 1973 के तेल संकट के बाद दिखाई थी.”

‘बिजली का युग’ आ चुका है

WEO 2025 के मुताबिक, दुनिया अब Age of Electricity में है.
आज वैश्विक ऊर्जा निवेश का आधा हिस्सा बिजली उत्पादन और इलेक्ट्रिफिकेशन पर खर्च हो रहा है.
बिजली फिलहाल कुल ऊर्जा खपत का करीब 20% हिस्सा है, लेकिन यह 40% वैश्विक अर्थव्यवस्था को चला रही है.
और अब इसमें एक नया खिलाड़ी जुड़ गया है, डेटा और AI.
सिर्फ 2025 में ही डेटा सेंटर्स में 580 अरब डॉलर का निवेश होने जा रहा है.
यह आंकड़ा तेल सप्लाई पर खर्च हो रहे 540 अरब डॉलर से भी ज़्यादा है.
यानी अब ‘डेटा नया तेल’ वाली कहावत हकीकत बन चुकी है.

ग्रिड और स्टोरेज पर पीछे है दुनिया

2015 से अब तक बिजली उत्पादन में निवेश 70% बढ़ चुका है.
लेकिन बिजली ग्रिड और स्टोरेज सिस्टम्स में यह रफ्तार आधी भी नहीं रही.
यानि अगर ग्रिड और स्टोरेज को नहीं सुधारा गया, तो हरियाली भले बढ़े, स्थिरता नहीं आएगी.
रिपोर्ट कहती है कि आने वाले सालों में नवीकरणीय ऊर्जा सबसे तेज़ बढ़ने वाली श्रेणी होगी, जिसमें सोलर सबसे आगे रहेगा.
दिलचस्प बात यह है कि 2035 तक ऊर्जा मांग में होने वाली 80% वृद्धि उन जगहों पर होगी जहां सूरज की रोशनी सबसे प्रचुर है.

परमाणु ऊर्जा की वापसी

दो दशक के ठहराव के बाद, न्यूक्लियर एनर्जी एक बार फिर चर्चा में है.
2025 से 2035 के बीच वैश्विक परमाणु क्षमता में कम से कम 30% बढ़ोतरी का अनुमान है.
और यह सिर्फ़ बड़े रिएक्टरों तक सीमित नहीं, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) में भी निवेश बढ़ रहा है.

तेल और गैस: सप्लाई फिलहाल ठीक, पर खतरा बना हुआ

रिपोर्ट कहती है कि अगले कुछ सालों में तेल और गैस की आपूर्ति पर्याप्त रहेगी. कीमतें अभी 60–65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हैं. साथ ही, LNG यानी लिक्विफ़ाइड नेचुरल गैस की नई परियोजनाएं तेज़ी से बढ़ रही हैं.

2025 में LNG निवेशों में उछाल आया है, 2030 तक 300 अरब घन मीटर नई सप्लाई जुड़ने की उम्मीद है.
इसमें आधा अमेरिका में बन रहा है, और करीब 20% क़तर में. मगर रिपोर्ट पूछती है, इतनी गैस जाएगी कहां?
क्योंकि मांग में उतनी वृद्धि नहीं दिख रही. और अगर ऊर्जा संक्रमण की रफ्तार धीमी पड़ी या तेल-गैस सस्ती हुई, तो यह संतुलन पलट भी सकता है.

दो मोर्चे अब भी अधूरे

IEA ने दो बातों पर साफ़ कहा है, हम अभी भी पीछे हैं.
पहला, सर्वजन बिजली पहुंच.
दूसरा, क्लाइमेट ऐक्शन.
आज भी करीब 73 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं, और 2 अरब लोग ऐसे ईंधन से खाना पकाते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.
रिपोर्ट में एक नया परिदृश्य दिखाया गया है, अगर दुनिया सहयोग करे, तो 2035 तक हर घर में बिजली और 2040 तक साफ़ कुकिंग संभव है.
इसमें LPG एक अहम ट्रांज़िशनल ईंधन की भूमिका निभा सकता है.

क्लाइमेट चेतावनी: 1.5°C की सीमा अब पार

सबसे चिंताजनक बात यह है कि किसी भी परिदृश्य में अब दुनिया 1.5°C की सीमा के अंदर नहीं रह पाएगी.
यहां तक कि अगर उत्सर्जन तेज़ी से घटाया भी जाए, तो भी यह सीमा पार होगी.
IEA के अनुसार, केवल नेट ज़ीरो बाय 2050 वाला रास्ता ही ऐसा है जो तापमान को दोबारा 1.5°C से नीचे ला सकता है.
रिपोर्ट बताती है कि जलवायु जोखिम अब ऊर्जा सुरक्षा का हिस्सा बन चुके हैं.
सिर्फ 2023 में ही जलवायु और साइबर हमलों से दुनिया भर में 20 करोड़ घर प्रभावित हुए.
इनमें 85% घटनाएं बिजली ग्रिड के नुकसान से जुड़ी थीं.

अब रास्ता एक ही है: भरोसा और साझेदारी

World Energy Outlook 2025 का संदेश साफ़ है, ऊर्जा की दौड़ में अब कोई अकेला नहीं जीत सकता.
जो देश अपनी ऊर्जा कहानी में विविधता और सहयोग नहीं जोड़ेंगे, वे असुरक्षा के भंवर में फंस जाएंगे.
ऊर्जा अब सिर्फ़ अर्थव्यवस्था की नहीं, अस्तित्व की कहानी है. अगर 1973 का तेल संकट हमें सिखाता था कि “ऊर्जा सुरक्षा ही संप्रभुता है,” तो 2025 हमें यह सिखा रहा है कि “ऊर्जा सुरक्षा तभी संभव है जब भरोसा और साझेदारी हो.”

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