भाव मंजरी डॉ विनय कुमार श्रीवास्तव के संपादन में इंक पब्लिकेशन से प्रकाशित काव्य संग्रह है और कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा की भावों से ओत प्रोत हैं ये संग्रह!!! मैं डॉ विनय कुमार श्रीवास्तव जी को इनके सार्थक संपादन के लिए बधाई देना चाहूंगी क्यूंकि यह संभवत एक कठिन कार्य रहता हैं !!! आपके अथक प्रयास और सफल संपादन के लिए आप प्रशंसा के पात्र है !!!
बात भाव मंजरी की करे तो इसकी सबसे खूबूरत बात ये है कि ये एक सांझा काव्य संग्रह हैं जिसमें 12 कवित्रियों ने अपने काव्य से सजाया है !!! एक खूबूरत सर्जन है ये संग्रह !!!
ख़ैर अपनी आदत से मजबूर होने की वजह से मुझमें एक आदत सी है की जब किताब खरीदती हूं तो नारियल समझ कर जल्दी श्री गणेश करती हूं !!!
काव्य की शुरुआत डॉ मोनिका शर्मा जी की कविताओं से हुई है जिसमें पहली कविता परछाई है और सच बताऊं तो परछाई को बहुत अच्छा लिखा गया है इसमें मेरी पसंदीदा लाइन है नई सूरज के इंतजार में शायद फिर सड़के चहकती मिले !!
वहीं अगर मैं दूसरी कविता की बात करूं जिम्मेदार तो यह वह कविता है जो हमें समाज के उस दायरे पर लेकर जाती हैं जहां प्रेम और प्रेम विवाह को स्वीकारने में घरवाले हिचकते हैं फिर किस तरह कवियत्री ने उस लड़की की व्यथा को वर्णन किया है
और इसमें मेरी पसंदीदा लाइन है
इज्जत इज्जत पर एक ऐसा वार हुआ हाय मैं बीमार हुआ घर वालो का नाटक तैयार हुआ
जिसकी जिम्मेदारी तो वहीं थी
बहुत ही बखूबी उन्होंने उस दृश्य को दर्शाया है जो अक्सर देखने को मिलता है वहीं अगर हम उनकी कविताओं की बात करे तो एक अलग तरीके का विवरण दिया गया है!!
फिर उसके बाद “पारो चंद्रमुखी” कविता को तो मानो प्रष्टो पर नहीं बल्कि पाठक के दिल में उतारा है !!!
“मिलती है चंद्रमुखी जो उनकी होकर भी उनकी नहीं जो चाहत का समुंदर है पर होती शायद निर्मल नहीं जैसे प्यार जताने का हक तो है पर प्यार निभाने का नहीं”
इन सब पंक्तियों ने कहीं ना कहीं उस चीज को छुआ है जो कटु सत्य है और स्वीकारा नहीं जाता इनकी कविता “इजहार” में प्रेम की गरिमा को दिखाया गया है जहां प्रेम अपने आप में स्वर्ग समान दिखता है !!!
“मैं मुस्कुरा हूं तो फिर लिया करो नज़र तीर दिल के पार ना होने दिया करो
अगर फिर भी रोक ना पाऊं वह तीर इस गुमशुदा दर्द का इजहार ना किया करो एक सहज और सुंदर चित्रण है !!!
आपको आपके सफल और कुशल लेखन की अनंत बधाईयां….मोनिका जी की लेखनी बेहद प्रभावशाली और प्रशंसनीय हैं लेखिका हमेशा उत्कृष्ट सृजन करती हैं !!! ईश्वर आप पर सदा मेहरबान रहे !!!
दूसरी सुश्री कवित्री शुभदा बाजपाई जी हैं और इन्होंने गीत लिखे हैं जो कि बहुत ही अंदाज़ अनोखा है इनकी कविता में मुझे ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव देखने को मिला तो कहीं इनके गीतों में मैं खो गई श्रृंगार से ओतप्रोत है इन के सारे गीत और इनके गीत की कुछ लाइन मैं साझा कर रही हूं!
“तिनका तिनका माया जोड़ी बीती बहुत रही अब थोड़ी ऐसे रंग श्याम के रंग में केसरिया परिधान हो गया”
वहीं एक और गीत की कुछ लाइन है जो मन के अंदर तक समा गई है…
मन है गोकुल मन वृंदावन मन है राधा मन है मोहन वीणा मन ही मन से मन है ग्वाला !
मन ही मन रहता मोहन चरणों में मोहन रहते हैं नैनन !!!
मैं कवित्री को इतनी खूबसूरत गीतों के लिए बधाइयां देना चाहती हूं!!!
संग्रह में तीसरी कवित्री प्रतिमा शर्मा जी की बात करें तो इनकी पहली कविता “मां “जिसमें मातृत्व का पूर्ण रूप देखने के लिए मिलता है उनकी दूसरी कविता आदमी हूं साथ में आदमी के बदलते हुए सब रूप के बारे में बहुत ही बखूबी देखने के लिए मिलता है और इनकी तीसरी कविता जो कि बेहद ही खूबसूरत है उसकी कुछ लाइनें आपके साथ साझा कर रही हूं
“एक दिन मैं भी तुम्हें बहुत खूबसूरत लगी थी तुमने अपना दिल मेरे हाथों में रख दिया बस यही ना जाने क्या बात हुई अचानक बदसूरत हो उठी “
मैं सच बोलूं तो यह पढ़ने के बाद मेरी आंखें डबडबा पड़ी क्योंकि कहीं ना कहीं औरत के जीवन का यह कटु सत्य है समय बदलने के साथ खूबसूरती भी बदल जाती है !!!
बात करें उनकी अगली कविता “परिवर्तन “की उसमे उन्होंने लिखा है कि _
“युगो युगो से जिंदगी हो जैसे उठी जो गूंगी बहरी कातिल होती मुस्कान “
इन्होंने जीवन के उस परिवर्तन को बताया है जिस पर एक इंसान पूरा जीवन इधर से उधर विचरण करता है
वहीं अगर “बंजारा मन” की बात करें तो इसने मन के सभी हिस्सों को ठीक से दिखाया है !!!
“चुप्पी शोर “शीर्षक कविता में कवित्री ने बखूबी दर्शाया है कि कैसे मौन भी मन में हलचल और शोर मचा कर रखता है !!और कैसे चुप्पी चुप्पी ना होकर भावनाओं का दर्पण हो जाती है !
प्रतिमा शर्मा जी को उनके बेहद निराले और खूबसूरत लेखन की शुभकानाएं !!!
इस संग्रह की अगली कवियत्री ने अपनी कविताओं को अलंकारों से सजाया है और सौभाग्य से इनका नाम भी अलंकृता शर्मा राय है!
अलंकृता जी ने प्रेम और उससे जुड़े लगभग सभी आधारों को अपनी कविता में भर दिया है !!!
अनुप्रास अलंकार ने कविता में चार चांद लगाए हैं!! निसंदेह शब्दों का चयन उच्च हिंदी का प्रमाण हैं आपके इतने खूबसूरत लेखन के लिए शुभकमनाएं और प्रार्थना के आप ऐसे ही लिखती रहे !!!
कुछ अंश लेखनी का सांझा कर रही हूं जो मुझे विशेष रूप से मुझे पसंद आया_
शुष्क मौन निश्तेज नयन (अनुप्रास)
कुछ बोल गए
ऐसा नहीं कि मेरी मोहब्बत कम हो गई
बस तू मेरे ख्वाबों की मल्लिका से
किसी और की हमसफ़र हो गई
(अक्सर ऐसा ही होता है एक अच्छी कृति)
जिस स्त्री गर्भ से तुमने जन्म लिया
तुम मान नहीं रख पाए उसका
(बलात्कारी की मां __ इस कविता में कवियत्री ने मां की मार्मिकता और समाज के एक अहम मुद्दे को बख़ूबी उकेरा है भावों से ओत प्रोत हैं ये कविता)
चंचल मन व्योम सा शून्य हो चला है ( कभी ना कभी भावों में बहते बहते कुछ चीज़े मर जाती हैं और इंसान शून्यता की तरफ अग्रसर होने लगता हैं बहुत प्यारा सृजन)
काली रात, पीला बदन
नीले निशानों को लिए ( अलंकार से सजी पंक्तियां)
आपसे मुलाकात इस पुस्तक मेले में ही हुई और आपकी लेखनी से भी !!! लेखिका जितनी सहज और खूबसूरत लेखन की मलिका है उतनी ही अपने उदार व्यवहार की भी !!! मिलते ही सहजता से जुड़ जाना आपका ये व्यक्तित्व आपकी लेखनी में भी है जो पाठक को सहजता से जोड़ता है!!
सफल लेखन की अशेष शुभकामनाएं !!!
अगली लेखिका नेहा पांडेय जी है नेहा जी की कविता में आप उम्र के सारे चरणों को आराम से देख सकते है और पढ़ने पर ऐसा लगता हैं जैसे सारे चरणों पर एक एक कविता लिखी है !!!
नेहा जी बहुत ही सहजता से जीवन के सभी उतार चड़ाव को स्वीकारने के लिए तैयार होने की प्रेरणा देती हैं और लिखती है
ये जीवन यदि संघर्ष है तो
संघर्ष स्वीकारा है मैंने __
(स्वीकृति ही जीवन का आधार है)
मैंने देखा है उस बचपन को “छोटू” नाम से बुलाते हुए
मैंने देखा है झूठे कप धुलवाते हुए
( समाज की एक मानसिकता का और असली सच का प्रमाण देती हैं ये कविता की पंक्तियां)
बड़े बुजुर्ग घर के सब खुश हैं
फसल कटे अब सोने की
और पड़े न कभी ज़रूरत
फिर से बथुआ बोने की!
( समाज में बेटा और बेटियों के भेद दिखाया है)
इनकी कविता में जीवन के संघर्ष और उसके बाद भी जीवन को बिना थके कैसे संवारना है ये बखूबी देखने को मिलता है प्रेम और मातृत्व भाव पर भी इनकी रचनाएं मन को छू लेने वाली हैं !!!
लेखिका जितना सुंदर लिखती है उतना ही ऊर्जावान इनका व्यक्तित्व भी है सहजता से जुड़ने वाली और प्रेममय है नेहा जी आपसे मिलकर और आपकी रचनाएं पढ़कर मै बहुत ही खुशी का अनुभव कर रही हूं!!!
ऐसे ही जीवन के पथ पर अग्रसर रहे और अपनी कविताओं से पाठकों को महकाती रहे !!!
आपको इस काव्य संग्रह की विशेष शुभकानाएं !!!
संग्रह में अगली लेखिका सोनिया “सूर्य प्रभा ” जी है !! इनकी लेखनी बेहद रोचक और परिपक्व है पढ़ने के बाद एक लय में बांध लेना इनकी लेखनी की खासियत है !!
एक पाठक की दृष्टि से बोलूं तो एक तार रूपी अहसास से जुड़ जाते है !!!
लेखिका काफ़ी सुलझे हुए व्यक्तित्व की मालिका है और बात बिल्कुल सीधे तरीके से काव्य रूप में बांध कर बोलती हैं !!!
आपको आपके सफल लेखन की बेहद शुभकामाएं आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा !!
ईश्वर आप पर सैदेव कृपा करें !!
कुछ पसंदीदा पंक्तियां सांझा कर रही हूं !!
बिखर जाता हैं मन
रात की स्याही से
दिल की कलम से
अरमानों के कागज पर
तू लिबास है मेरा पक्के धानी रंग वाला
मैंने इस लिबास से मोहब्बत की हैं (वाह! वाह)
जीवन के कैनवास पर
एक नहीं हो पाते थे
गैरो को देती हूं ज़माने भर की खुशियां
बदले में दिल का करार लेती हूं (touched)
संग्रह की अगली लेखिका पूनम सक्सेना जी है
पूनम जी की सभी कविताएं भावों से भरी है और ऊर्दू का खासा प्रयोग हुआ है फिर भी उर्दू के शब्द आसानी से पढ़े और समझे जा सकते हैं जो कि काव्य का सौंदर्य बढ़ा रहे हैं !!
पढ़ते हुए लगा की इनकी लेखनी काफी उत्कृष्ट और दिल में उतरने वाली है !! मैंने इनकी सभी कविता दो बार पढ़ी और जहां तक पंक्तियों की बात है सभी कविता एक से एक बढ़कर है !!!
एक सफल और परिपक्व लेखन कि उपमा भी दी जा सकती हैं !!! बहुत ही खूबसूरत सृजन है ईश्वर से प्रार्थना है कि निरंतर आपकी कलम पर मेहरबान रहे !!! आपसे मुलाकात सुखद थी पर थोड़ी कम समय की रही !! आशा है अगली बार अधिक समय बिताएंगे!!!
आपकी कुछ पंक्तियां सांझा कर रही हूं !!
रफ्ता रफ्ता तन्हा तन्हा
खुद में ढलने लगी हूं
मैं को हटाकर
तू और हम का सबक याद करते
फिर बनकर चमकू प्रकाश पुंज तेरा
जिसमे दिखे अक्स ‘ख़ुदा’ तेरा
पाना चाहता तूबा वो
पर फसा है तुले अमल में
जला भी वो चिराग कई दफा
पर फिर छोड़ गया एक अंधेरी रात को (बहुत खूब)
इश्क भी वही पर इखलास के संग
माफीनामा भी वही पर इंतकाम नहीं
झूठ हर कागज़ पर छा गया
सच कहीं रद्दी में समा गया
संग्रह में अगली लेखिका डॉ ज्योति थापा जी है इनकी कविताओं में आप प्रकृति के प्रति लगाव और सौंदर्य वर्णन को देख सकते हैं जो कि बहुत ही खूबसूरती से पृष्टो पर जीवंत चित्रण दे रहा है !! प्रकृति के रंग हो या मौसम सभी का जागता रूप आप इनकी कविता में देख सकते हैं !!!
इतना ही नहीं आप जीवन के सभी भावों को जी भी सकते हैं इनकी कविताओं में !!! लेखिका को इनके सार्थक लेकिन के लिए अशेष शुभकामनाएं !!! आगे भी इसी तरह लिखती रहे यही दुआ है !!
कुछ पसंदीदा पंक्तियां सांझा कर रही हूं !!
नालो ने नदियों तक
पहुंचने का रास्ता बना लिया
मुझे नींद नहीं आती सुनसानी रातो में
कुछ साल से वो घर बंद था
एक पेड़ रखवाली करता था उस घर की
सब पर लगी हैं
वक्त की पाबंदियां (कटु सत्य)
बन परिंदा उड़ना चाहूं
क्यों ये दुनिया पर काटे रै
संग्रह में अगली लेखिका साक्षी शांडिल्य जी है काव्य एक कला है और इनकी बात करे तो ये इस कला में निपुण बहुत ही उत्कृष्ट और मझा हुआ लेखन है इनकी एक कविता याद तुम्हे निज अस्तित्व की औरतों के लिए प्रेरणा का सागर है और मुझे बहुत पसंद आई है इतना खूबसूरत सृजन एक अच्छे लेखन का ही प्रतीक हैं !!! आप की सभी कविताएं दिल में उतर गई हैं !!! आपके उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई ईश्वर आप पर सदा मेहरबान रहे !!!
कुछ पसंदीदा पंक्तियां सांझा कर रही हूं !!
कुछ हिस्से थे कुछ नगमे थे
हमराज़ तुम्हीं तो मेरे थे ( वाह)
जो रचती हूं रच जाते हो
घर को आंगन दे जाते हो
लिखने को दुनिया आती हूं
ज़ज्बातों में खो जाती हूं
मोह है परचम
पर इसका अंत लाऊं कैसे
मान भी दूं सम्मान भी दूं
जमा किया घर बार भी दूं ( वाह )
संग्रह में अगली लेखिका ललिता नारायणी जी हैं खूबसूरत लेखनी और अल्फ़ाज़ की मलिका हैं ये !!!
इनकी पहली ही कविता की पंक्तियों ने मुझे कायल कर दिया अगर वाह इन तक 10 गुना होकर पहुंच जाए तो भी कम है
“तुम्हारे लिए मैं अपरिचित हूं
शायद पर मैंने तुम्हारी शोहरत सुनी है
है अजनबी सा मोहल्ला तुम्हारा
पर तुमसे परिचित हमारी गली है “
मेरे दिल को छू गई आपकी पंक्तियां आपको इतने सटीक और परिपक्व लेखन के लिए लाखो बार शुभकानाएं ईश्वर आप पर हमेशा अपनी अनुकम्पा बरसाए !!!
कुछ पसंदीदा पंक्तियां सांझा कर रही हूं!!!
हम सादगी से हुस्न कि किताब ढांपते रहे
वो महफिलों के साज और श्रृंगार में चले गए
झुकने की कोई ज़रूरत नहीं थी
ज़रूरत जहां थी झुक कर चले है
है लहरों पे चलने की हसरत हमारी
तो भवर बीच हमको किनारे मिलेंगे
गैरो की दहलीज पर जाकर
बड़े निडर से रहते हैं
जब अपनों ने गले लगाया
डरते ख्वाब अधूरे हैं
संग्रह में अगली लेखिका नूतन योगेश सक्सेना जी है इनकी कविता अलग अलग विषयों पर है और एक सटीक अंदाज़ में लिखी गई है चाहे बसंत हो या नारी या फिर देश के वीर जवानों की बात करे उन्होंने सभी की व्यथा और गुणगान को अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है जो कि एक सार्थक और सफल लेखन का हिस्सा होता हैं आपको आपके सफल लेखन के लिए बधाई और अग्रिम लेखन के लिए शुभकानाएं !! ईश्वर आप पर हमेशा अपनी अनुकम्पा रखे !!!
कुछ पसंदीदा पंक्तियां सांझा कर रही हूं !!!
सावन में तीज का आना
मायके की हर याद को साथ लाना
जीवन की कड़ी धूप में, जलते पांव
जैसे पा जाते हो,बरगद की घनी छांव
आज मचा है धारा पर चारो ओर हाहाकार
तप रही है भूमि ,मानव खुद पर ही कर रहा वार
संग्रह की अगली लेखिका अल्पना श्रीवास्तव जी है रिश्तों की बानगी और उसमें जीना, उठना ,गिरना संभालना प्रेम को अभिव्यक्त करना ही इनकी कविताओं का सार है लिखना तभी सफल होता हैं जब पाठक उसे जी के वही जीवंत रूप इनकी लेखनी में देखने को मिला !!! आपकी लेखनी और भाव दोनों अतुल्य हैं आपको आपके सार्थक लेखन के लिए अशेष शुभकामनाएं !!! ईश्वर निरंतर आपकी कलम पर कृपा दृष्टि बनाए !!!
कुछ पसंदीदा पंक्तियां सांझा कर रही हूं !!!
क्या मां मै कभी तेरी तरह बन पाएंगी
अपने बच्चों की कसौटी पर खरी उतर पाऊंगी
मौन रहकर बहुत कुछ कह रहे हो तुम
कैसे इस निशब्द गुंजन को सह रहे हो तुम (वाह वाह )
तुम फलक हो मै जमी
फिर भी मैं मिलना चाहती हूं
अंततः इतना ही कहूंगी कि एक बहुत ही सफल और भाव विभोर कर देने वाला संग्रह है ये जिसे 12 उत्कृष्ट लोगो की लेखनी से सजाया गया है !!!
पाठको को ज़रूर पढ़नी चाहिए
आप सभी से किसी भी प्रकार की शाब्दिक त्रुटि के लिए अग्रिम क्षमा याचना !!!
समीक्षक- सविता सिंह “सैवी”