श्रावस्ती :- एक लड़का गलत संगति में पड़ गया। गलत दोस्तों में बैठकर तम्बाकू, शराब आदि की लत गई। जब गलत चीजों का सेवन करने लगा तो शरीर भी कमजोर होता गया और विचार भी गलत हो गये क्योंकि “जैसा खाय अन्न वैसा बने मन”।
जब उसके जीवन में अँधेरा छा गया तो एक बार एक आर्य (सज्जन) व्यक्ति की उससे भेंट हुई। उन्होंने उसको प्रातः चार बजे उठकर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर नहा-धोकर गायत्री महामन्त्र का जाप करने को कहा तथा इससे पूर्व प्राणायाम करने को कहा और प्राणायाम की विधि भी सिखा दी।
वह लड़का उस सज्जन व्यक्ति की बात मान गया। बस समझो उसके भाग्य पलटने या जीवन बदलने का समय आ गया था। उसने सज्जन के निर्देशानुसार नित्य कर्म से निवृत्त होकर प्राणायाम सहित गायत्री मन्त्र का जाप शुरु कर दिया। जब प्राणायाम करने लगा तथा गायत्री मन्त्र का भी जाप शुरु कर दिया तो बुद्धि भी सात्विक विचारों की होती गई।
ईश्वर की कृपा हुई, सभी व्यसन धीरे–धीरे छुट गये। उसकी समझ में आ गया कि मैं तो विनाश के मार्ग पर जा रहा था। अतः तम्बाकू आदि व्यसनों की हानि का उसको अनुभव होने लगा। फिर उसने सभी व्यसन छोड़कर अपने गलत मित्रों की संगति भी छोड़ दी। अब उसका जीवन पूरी तरह बदल गया।
उसको जीवन में आनन्द आने लगा। सोचने लगा कि अब जीवन मनुष्य का है पहले मनुष्य होकर भी पशु के समान था। उसके घर वाले भी उसमें परिवर्तन देखकर बहुत खुश हुए। अब उसके विवाह के प्रस्ताव आने लगे, चूँकि सभी व्यसन छोड़ने से चेहरे पर रौनक आ गई और स्वास्थ्य उत्तम होता गया।
घर वालों ने एक सुशील आर्य कन्या देखकर उसका विवाह कर दिया। पति–पत्नी बहुत खुश रहते हैं। दोनों पक्के आर्य बन गये। ये सब ईश्वर की कृपा से (गायत्री मन्त्र के प्रभाव से) हुआ।
रिपोर्ट अंकुर मिश्रा