1962 के भारत चीन युद्ध के बारे में सभी बात करते है, लेकिन 1967 के युद्ध में भी भारत ने चीन को करारी शिकस्त दी थी. दरअसल तब चीन ने अपना विस्तार करने के लिए चीन से लगे सिक्किम पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी, तब नाथू ला और चो ला फ्रंट पर ये युद्ध लड़ा गया था. यह युद्ध 1 अक्टूबर से 10 अक्टूबर के बीच लड़ा गया. इस युद्ध में 88 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, लेकिन 400 चीनी सैनिको को उन्होंने मौत के घाट उतार दिया था. इस युद्ध के बाद ही सिक्किम भारत का हिस्सा बना. इस युद्ध में पूर्वी कमान को सैम मानेकशा संभाल रहे थे, जिन्होंने बांग्लादेश बनवाया था. मानेकशा भारतीय सेना के अध्यक्ष थे, उनके नेतृत्व में भारत ने सन् 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त किया था, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था. 1962 में चीन से मिली शिकस्त की टीस आज भी भारतीयों के दिल में बरकरार है, पर इतिहास इसका भी गवाह है कि इस घटना के पांच साल बाद 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी नहीं भुला पायेगा.
यह सबक भी उन कारणों में से एक है जो चीन को भारत के खिलाफ किसी दुस्साहस से रोकता है.
1967 के टकराव के दौरान भारत की 2 ग्रेनेडियर्स बटालियन के जिम्मे नाथु ला की सुरक्षा थी. इस बटालियन की कमान तब ल़े कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) राय सिंह के हाथों में थी. इस बटालियन की कमान तब ब्रिगेडियर एम़ एम़ एस़ बक्शी, एमवीसी, की कमान वाले माउंटेन बिग्रेड के अधीन थी. 6 सितंबर, 1967 को धक्कामुक्की की एक घटना का संज्ञान लेते हुए भारतीय सेना ने तनाव दूर करने के लिए नाथु ला से लेकर सेबू ला तक के दर्रे के बीच में तार बिछाने का फैसला किया. यह जिम्मा 70 फील्ड कंपनी ऑफ इंजीनियर्स एवं 18 राजपूत की एक टुकड़ी को सौंपा गया. जब बाड़बंदी शुरू हुई तो चीन के पॉलिटिकल कमीसार ने राय सिंह से फौरन यह काम रोकने को कहा. दोनों ओर से कहासुनी शुरू हुई और चीनी अधिकारी के साथ धक्कामुक्की से तनाव बढ़ गया. चीनी सैनिक तुरंत अपने बंकर में लौट गए और भारतीय इंजीनियरों ने तार डालना जारी रखा.
चंद मिनटों के अंदर चीनी सीमा से तेज आवाज आने लगी और फिर चीनियों ने मेडियम मशीन गनों से गोलियां बरसानी शुरू कीं. भारतीय सैनिकों को शुरू में भारी नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें चीन से ऐसे कदम का अंदेशा नहीं था. राय सिंह खुद जख्मी हो गए, वहीं दो जांबाज अधिकारियों 2 ग्रेनेडियर्स के कैप्टन डागर एवं 18 राजपूत के मेजर हरभजन सिंह के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों के एक छोटे दल ने चीनी सैनिकों का मुकाबला करने की भरपूर कोशिश की और इस प्रयास में दोनों अधिकारी शहीद हो गए. प्रथम 10 मिनट के अंदर करीब 70 सैनिक मारे जा चुके थे और कई घायल हुए. इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ उसने चीन का इरादा चकनाचूर कर दिया. सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया. कई चीनी बंकर ध्वस्त हो गए और खुद चीनी आकलन के अनुसार भारतीय सैनिकों के हाथों उनके 400 से अधिक सैनिक मारे गए.
भारत की ओर से लगातार तीन दिनों तक दिन-रात फायरिंग जारी रही. चीन को सबक सिखाया जा चुका था. रात में चीनी सैनिक अपने मारे गए साथियों की लाशें उठाकर ले गए और भारत पर सीमा का उल्लंघन करने का आरोप गढ़ा गया. 15 सितंबर को ले. ज. जगजीत अरोरा एवं ले. ज. सैम मानेकशॉ समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में शवों की अदला-बदली हुई. 1 अक्टूबर, 1967 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने चाओ ला इलाके में फिर से भारत के सब्र की परीक्षा लेने का दुस्साहस किया, पर वहां मुस्तैद 7/11 गोरखा राइफल्स एवं 10 जैक राइफल्स नामक भारतीय बटालियनों ने इस दुस्साहस को नाकाम कर चीन को फिर से सबक सिखाया. भारत के कड़े प्रतिरोध का इतना असर हुआ कि चीन ने भारत को यहाँ तक धमकी दे दी कि वो उसके ख़िलाफ़ अपनी वायु सेना का इस्तेमाल करेगा. लेकिन भारत पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ. इतना ही नहीं 15 दिनों बाद 1 अक्तूबर 1967 को सिक्किम में ही एक और जगह चो ला में भारत और चीन के सैनिकों के बीच एक और भिड़ंत हुई.
इसमें भी भारतीय सैनिकों ने चीन का ज़बरदस्त मुकाबला किया और उनके सैनिकों को तीन किलोमीटर अंदर ‘काम बैरेक्स’ तक ढकेल दिया. दिलचस्प बात ये है कि जब 15 सितंबर, 1967 को जब लड़ाई रुकी जो मारे गए भारतीय सैनिकों के शवों को रिसीव करने के लिए सीमा पर इस समय पूर्वी कमान के प्रमुख सैम मानेक शॉ, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और जनरल सगत सिंह मौजूद थे. चार साल बाद 1971 में यही तीनों लोग पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई में जीत में मुख्य भूमिका निभाने वाले थे.
इस युद्ध के हीरो थे राजपूताना रेजिमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजिमेंट के कृष्ण बहादुर, देवी प्रसाद. इस युद्ध में जब भारतीय जवानों के पास गोलियां खत्म हो गयी तो उन्होंने चीनियों को अपनी खुर्की से ही काट डाला था. कई गोलियां खाने के बाद भी मेजर जोशी ने चार चीनी ऑफिसर को मार गिराया. इस युद्ध में सबने वीरता दिखाई. बाद में शहीदों को उनकी वीरता के लिए सरकार ने कई सम्मान दिए.