बॉलीवुड। बंबइया फिल्में। हिंदी फ़िल्म। हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री हमारे देश की सबसे बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री है। यहां हर विषय पर फिल्में बना करती है। इनसे से कुछ बुरी होती है। कुछ अच्छी होती हैं तो कुछ बहुत अच्छी होती हैं । आज कुछ अच्छी फ़िल्म और अच्छी फिल्में बनाने वालों की चर्चा की जाएगी। ध्यान रहे यहां हम सिर्फ़ आज के समय में बनने वाली फिल्मों का ज़िक्र कर रहे हैं।
तो चलिए रोमेंटिक फिल्मों से शुरू करते हैं। यश चोपड़ा की फिल्मों का ज़माना बीत चुका है और ख़ुद यश चोपड़ा भी अब नहीं रहे इस दुनिया में। अपनी आख़िरी फ़िल्म उन्होंने “जब तक है जान” निर्देशित की जो औसत दर्जे की रही थी। यश राज बैनर की विरासत अब आदित्य चोपड़ा के हाथों में है। आदित्य एक बढ़िया निर्देशक थे लेकिन उनकी निर्देशित फ़िल्म बेफ़िक्रे ने सबको बेफिक्र कर दिया कि अब आदित्य एक बिज़नेस मैन हैं ना कि निर्देशक। करण जौहर को लिस्ट में नहीं रखा गया है। तो आजकल कौन बना रहा बढ़िया इश्किया फिल्में तो ज़वाब है लव आजकल बनाने वाले। इम्तियाज़ अली। सोचा ना था, जब वी मेट, लव आजकल, रॉकस्टार, तमाशा ये फ़िल्में अपने आप में इम्तियाज़ की काबिलियत का परिचय है। आनंद एल राय की फ़िल्में एक अलग जादू लिए है। चाहे तनु वेड्स मनु हो या रांझना। और दो चार को छोड़कर अभी और कोई ख़ास क़िस्म की फिल्में नहीं बना रहा।
कॉमेडी। कॉमेडी फिल्में हर किसी को देखनी चाहिए। एक तो हंसने से स्वास्थ्य भी ठीक बना रहता है और दुनिया भी ख़ूबसूरत बनी रहती है। मुझे ऋषिकेश मुखर्जी की गोलमाल बेहद पसंद हैं। गोलमाल की चर्चा किए बिना मैं रह नहीं सका क्योंकि ये फ़िल्म ही ऐसी है। मस्ट वॉच फ़िल्म है। जैसा कि ऊपर मैंने कहा कि चर्चा सिर्फ़ आजकल की फिल्मों पर होगी तो वापस लौटते हैं फिर से विषय पर। एक निर्देशक हैं प्रियदर्शन। बेजोड़ कॉमेडी बनाते है। अरे नहीं पहचाने प्रियदर्शन जी को? बाबू राव याद है? हेरा फेरी बनाने वाले प्रियदर्शन। प्रियदर्शन ने बहुत सी कॉमेडी फिल्में बनाई है। चुप चुप के, हंगामा, हलचल, ढोल, भूल भुलैया, मालामाल वीकली एवम् अन्य। रोहित शेट्टी को यहां कंसीडर नहीं किया जा रहा है।
क्राइम। सबसे चर्चित विषय है क्राइम। राम गोपाल वर्मा के हुनर को अब जंग लग चुकी है। सत्या जैसी कल्ट फ़िल्म बनाने वाले रामू अब मिया मलकोवा को शूट करते हैं। मिया मलकोवा एक मशहूर पोर्न आर्टिस्ट है। फ़िर भी आजकल क्राइम फिल्में ख़ूब बन रही हैं। और इसका सारा श्रेय अनुराग कश्यप को जाता है। अनुराग एक बेहतरीन निर्देशक हैं। हमेशा रिस्क लेते हैं। भला हो मल्टीप्लेक्स दाैर का जो शायद अनुराग अपनी सिनेमा में प्रयोग कर पाएं। आज जिस मुकाम पर अनुराग खड़े हैं, वहां पहुंचने के लिए अनुराग ने बहुत पसीना बहाया है।
ख़ैर अनुराग के संघर्ष पर लिखने पर लेख बड़ा हो जाएगा इसलिए उनकी चुनिंदा फिल्मों का ज़िक्र करते हैं जिसने इस फ़िल्म इंडस्ट्री को नई दिशा दी। ब्लैक फ्राइडे, देव डी, गुलाल, अग्ली, और गैंग्स ऑफ वासेपुर। गैंग्स ऑफ वासेपुर की लोकप्रियता ने बहुत से निर्देशकों का ध्यान आकर्षित किया। लेकिन हीरा तो आख़िर हीरा ही होता है।
मुझे सबसे ज्यादा थ्रिलर फिल्में लुभाती हैं। थ्रिलर फ़िल्म बनाने के मामले में श्रीराम राघवन का कोई जोड़ नहीं है। जॉनी गद्दार, बदलापुर, अभी हाल में आई फ़िल्म अंधाधुन में श्रीराम राघवन का जलवा देखा जा सकता है। अभी थ्रिलर फ़िल्म का ज़िक्र करते हुए अब्बास मस्तान भी याद अा रहे हैं। अ वेडनसडे बनाने वाले नीरज पांडेय भी बेहद बढ़िया निर्देशक है। स्पेशल छब्बीस और बेबी इनकी प्रमुख फ़िल्म हैं।
पॉलिटिकल फिल्में। इस देश में इतनी पॉलिटिक्स होने के बाद भी अच्छी पॉलिटिकल फिल्में नहीं बनती है। और जो बनती भी हैं वो दोयम दर्जे की होती है। काबिलियत की कमी और फिर सेंसर की कैंची दो कारण हैं। लेकिन कुछ लोग हैं जो अच्छी पॉलिटीकल फ़िल्म बनाते हैं। जैसे कि सुधीर मिश्रा, विशाल भारद्वाज, विवेक अग्नहोत्री, दिबाकर बैनर्जी और कुछ अन्य। “हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी” सुधीर मिश्रा की कल्ट फ़िल्म है। दास देव और ये साली ज़िंदगी कमाल की फ़िल्म है।
विशाल भारद्वाज ने शेक्सपीयर के हैमलेट पर हैदर फ़िल्म बनाकर अपनी फ़िल्मों की ट्रिलॉजी पूरी की। ध्यान रहे विशाल की ओमकारा, मकबूल भी शेक्सपीयर की किताब क्रमशः ओथेलो और मैकबेथ पर आधारित है। विवेक अग्निहोत्री ने बुद्धा इन अ ट्रैफिक जैम और तासकंद फाइल्स जैसी चर्चित फ़िल्म बनाई है। दिबाकर बैनर्जी ने जो पॉलिटिकल फ़िल्म बनाई है उसका नाम शांघाई है।
बायोपिक फिल्मों का ज़िक्र इसलिए नहीं कर रहा हूं क्योंकि दरसअल ये बायोपिक फिल्में है ही नहीं। ये महज़ बायोपिक के नाम पर किसी के शोहरत को कैश करने का फूहड़ तरीका भर है।
अंत में कुछ निर्देशकों के नाम जो बढ़िया फिल्में बना रहे हैं। विक्रमादित्य मोटवाने( उड़ान ,लुटेरा)। नीरज घेयवान (मसान)। अभिषेक चौबे ( इश्किया, डेढ़ इश्किया)। मेघना गुलज़ार (तलवार, राज़ी) अनुराग बासु ( लाइफ़ इन अ मेट्रो, बर्फी)। मोहित सूरी, नितिन तिवारी, अनुभव सिन्हा और कुछ अन्य…..!
दीपक सिंह