कानपुर मेट्रो ने आज बृजेंद्र स्वरूप पार्क के आगे पड़ने वाले सीसामऊ नाले पर ‘अप-लाइन’ और ‘डाउन-लाइन’ के लिए अलग-अलग स्टील बॉक्स गर्डर्स रख एक और मील का पत्थर हासिल कर लिया। प्रॉयोरिटी सेक्शन को शेष सेक्शन से जोड़ने की कड़ी में यह सबसे अहम चुनौती थी। इसके साथ ही 9 किमी. लंबे प्रॉयोरिटी सेक्शन को चुन्नीगंज-नयागंज अंडरग्राउंड सेक्शन से जोड़ने के लिए बनाए जा रहे रैंप के निर्माण को और गति मिली है। कानपुर मेट्रो ने इससे पहले प्रॉयोरिटी सेक्शन (आईआईटी – मोती झील) के निर्माण के दौरान रावतपुर तिराहे पर भी स्टील बॉक्स गर्डर का इरेक्शन (परिनिर्माण) किया था।
बता दें कि प्रॉयोरिटी सेक्शन पर बनाया गया मेट्रो का वायडक्ट (पुल) बृजेंद्र स्वरूप पार्क के आगे पड़ने वाले सीसामऊ नाले से होकर चुन्नीगंज-नयागंज अंडरग्राउंड सेक्शन के टनल से जुड़ना है। इस प्रक्रिया में सीसामऊ नाले के दोनों तरफ स्थापित पिलर्स की दूरी अधिक होने की वजह से यहाँ पर यू-गर्डर या आई-गर्डर की जगह स्टील बॉक्स गर्डर रखने की योजना बनाई गई थी, जिसे आज मेट्रो के इंजीनियरों ने अंजाम दिया।
इस अवसर पर मेट्रो इंजीनियरों की टीम को बधाई देते हुए यूपीएमआरसी के प्रबंध निदेशक श्री सुशील कुमार ने कहा, “सीसामऊ नाले के ऊपर से मेट्रो को गुजारने के लिए योजनानुसार नाले के दोनों तरफ के पिलर्स के बीच की दूरी 45 मीटर रखी गई थी। यही वजह रही कि इस स्पैन में यू-गर्डर या आई-गर्डर की जगह ख़ासतौर पर तैयार हल्के वज़न वाले दो स्टील बॉक्स गर्डर्स रखे गए। आज हमने सीसामऊ नाले के ऊपर दोनों ‘अप-लाइन’ और ‘डाउन-लाइन’ पर स्टील बॉक्स गर्डर के इरेक्शन के साथ ही एक और स्टील स्पैन तैयार कर लिया है। इसके लिए यूपीएमआरसी और कांट्रैक्टिंग एजेंसी की पूरी टीम को बधाई।”
क्यों पड़ी ज़रूरत ‘स्टील बॉक्स गर्डर’ की?
सीसामाऊ नाला शहर का सबसे बड़ा नाला है जो कानपुर मेट्रो के कॉरिडोर-1 के रास्ते में पड़ता है इस नाले को पार करने के बाद ही कानपुर मेट्रो रैंप के माध्यम से अंडरग्राउंड टनल में प्रवेश करेगी। सीसामाऊ नाले के दोनों तरफ पिलर्स स्थापित करने के लिए 45 मीटर की दूरी निर्धारित की गई थी। इतनी दूरी में यू-गर्डर या आई-गर्डर रखा जाना संभव नहीं था, जिस वजह से इस स्पैन में ‘स्टील बॉक्स गर्डर’ का इस्तेमाल करने का फ़ैसला लिया गया।
किस चुनौती का करना पड़ा सामना ?
सीसामाऊ नाले पर रखे गए प्रत्येक स्टील बॉक्स गर्डर कुल 5 सेग्मेंट (भागों) को आपस में जोड़कर तैयार किए गए हैं। स्थान कम होने के कारण इन्हें एक साथ जोड़कर इरेक्ट करना संभव नहीं था। ऐसे में प्रत्येक गर्डर को दो हिस्सों में; तीन सेग्मेंट नाले के एक तरफ (3 पार्ट मोड्यूल) और दूसरे दो सेग्मेंट नाले के दूसरी तरफ (2 पार्ट मोड्यूल) रखकर जोड़ा गया। दोनों गर्डर के दोनों हिस्सों के तैयार हो जाने के बाद इन्हें नाले पर अस्थायी रूप से रखकर आपस में जोड़ दिया गया। इस तरह से सभी सेग्मेंट के जुड़ जाने के बाद दोनों स्टील बॉक्स गर्डर को एक-एक कर पिलर पर इरेक्ट या परिस्थापित किया गया।
स्टील बॉक्स गर्डर की विशेषता
इन स्टील गर्डर्स की लंबाई, कॉरिडोर में इस्तेमाल रहे यू-गर्डर्स से अधिक है, लेकिन इसका वज़न अपेक्षाकृत काफ़ी कम है। बता दें कि कानपुर मेट्रो में इस्तेमाल हुए इन स्टील गर्डर्स की लंबाई 45 मीटर है, जबकि यू -गर्डर्स की लंबाई औसत रूप से 27 मीटर है। जहाँ 27 मीटर के न्-गर्डर का वज़न लगभग 147 टन है, वहीं इस 45 मीटर के स्टील गर्डर का वज़न लगभग 120 टन है।
कानपुर में आईआईटी से नौबस्ता के बीच बन रहे कॉरिडोर-1 में कुल 3 जगहों पर स्टील बॉक्स गर्डर का प्रयोग होना है। सबसे पहले प्रॉयोरिटी सेक्शन (आईआईटी – मोतीझील) के निर्माण के दौरान रावतपुर तिराहे पर स्टील बॉक्स गर्डर का इरेक्शन किया गया था। ऐसा तिराहे पर भारी ट्रैफिक और वाहनों की आवाजाही को देखते हुए दो पिलर्स के बीच दूरी बढ़ जाने की वजह से किया गया था। रावतपुर और सीसामऊ नाला के अलावा वसंत विहार के नजदीक भी स्टील बॉक्स गर्डर रखे जाने की योजना है। ‘अप-लाइन’ और ‘डाउन-लाइन’ के लिए अलग-अलग स्टील गर्डर्स रखे जाते हैं।