अर्पण घोष जो शायद आज से कुछ साल बाद एक सफल मैकेनिकल इंजीनियर बन कर देश दुनिया में भारत और दुर्गापुर का नाम रोशन कर सकता था, या फिर शायद किसी स्टार्ट अप से जुड़कर खुद की और देश की अर्थव्यवस्था को नई उड़ान दे सकता था। लेकिन अफसोस अर्पण घोष अब नहीं है। सिस्टम के जरूरी पेपर वर्क के आगे उसकी जिंदगी ने जवाब दे दिया और उसकी मृत्यु हो गई।
मामला पश्चिम बंगाल के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) दुर्गापुर का है। जहाँ मेकैनिकल विभाग के दूसरे वर्ष के छात्र अर्पण घोष ने आत्महत्या कर ली। रविवार की शाम जैसे ही उसके दोस्तों ने उसे लटके हुए देखा वे तुरंत ही उसे लेकर इंस्टीट्यूट के मेडिकल विभाग ले गये।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक संस्थान के मेडिकल विभाग ने अपने होनहार की जिंदगी बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अर्पण को एम्ब्यूलेंस मुहैया कराने के बजाय विभाग द्वारा उसकी आईकार्ड और रोल नंबर मांगा जाने लगा। और जो एम्ब्यूलेंस उसे उपलब्ध कराई गई, उसमें आॅक्सीजन भी नहीं थी, जिसके कारण अर्पण की मौत हो गई।
छात्रों ने किया हंगामा, निदेशक ने दिया इस्तीफा
अर्पण की मौत के बाद छात्रों में गुस्से का माहौल बन गया। रविवार रात से संस्थान परिसर में सैकड़ों छात्रों संस्थान प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए देर रात तक हंगामा किया संस्थान के निदेशक के खिलाफ जम कर नारेबाजी की। उनकी मांग थी कि उक्त घटना की जिम्मेदारी लेते हुए निदेशक अपना पद छोड़ें। छात्रों के उग्र प्रदर्शन और दबाव के बीच निदेशक को अपना पद छोड़ देना पड़ा। मिली जानकारी के मुताबिक निदेशक अरविंद चौबे ने अपना इस्तीफा केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेज दिया है। त्यागपत्र में उन्होंने कॉलेज में हुई घटना की जिम्मेदारी लेने की बात लिखी है।
आत्महत्या की वजह हो सकती है बैकलॉग
प्राप्त जानकारी के मुताबिक अर्पण को सैकेंड सेमेस्टर में बैक लगी थी। रविवार को चौथे सेमेस्टर के साथ ही दूसरे सेमेस्टर के बैक पेपर में भी उसे बैठना था। परीक्षा का समय पूरा होने से पहले ही अर्पण उत्तर-पुस्तिका जमा कर हॉस्टल लौट आया था। कुछ देर बाद उसके सहपाठी जब हॉस्टल आये, तो अर्पण को फंदे से झूलता देख दंग रह गये। छात्रों ने इसकी सूचना संस्थान प्रबंधन को दी। संस्थान के सैकड़ों छात्रों का दावा है कि अचेत अर्पण को सीलिंग से उतारने के बाद भी उसकी सांसें चल रही थीं यानी वह जिंदा था। लेकिन पेपर वर्क के नाम पर इलाज में की गई देरी की वजह से उसकी मौत हो गई।
निदेशक अरविंद चौबे ने दिया इस्तीफा, कहा— मानूँगा मंत्रालय का आदेश
घटना के बारे में पूछे जाने पर निदेशक अरविंद चौबे ने बताया कि अर्पण घोष संस्थान का मेधावी छात्र था। उसके इस तरह चले जाने की घटना दुखद है। हालांकि घटना को लेकर छात्रों का हंगामा करना भी अनुचित है। प्रदर्शन करते छात्र निदेशक के इस्तीफे पर अड़े थे. इसके पीछे उनकी क्या मंशा है, यह समझ से परे है। बकौल अरविंद चौबे, “त्यागपत्र पर मैंने साइन कर शिक्षा मंत्रालय को भेज दिया है. मंत्रालय का जो आदेश होगा, उसे मान लूंगा।”
प्रोफेसर चौबे के मुताबिक घटना के 10 मिनट के अंदर ही अर्पण को बड़े अस्पताल भेजा गया था, जहां वह खुद भी मौजूद थे। छात्रों का उग्र आंदोलन करना गलत है। इसके पीछे किसकी साजिश है, जांच होनी चाहिए.
अरविंद चौबे ने बताया कि दुर्गापुर के संस्थान में उनके पदभार संभालने के आठ दिनों के अंदर ही छात्रों ने ‘गो बैक’ के नारे लिखे पोस्टर जगह-जगह लगाये थे। मालूम रहे कि कुछ वर्ष पहले भी यहां के तत्कालीन निदेशक टी कुमार के खिलाफ यहां के छात्र-छात्राओं ने आंदोलन किया था।
छात्रों ने बताया निदेशक को जिम्मेदार
संस्थान के छात्रों के मुताबिक संस्थान के फार्मेसी में ले जाने के बाद वहां के कर्मचारी इलाज से पहले उसका आइ-कार्ड मांगने लगे। फिर उसे बड़े अस्पताल में ले जाने को कहा. संस्थान के छात्र-छात्राओं की शिकायत है कि यहां पहले दो एंबुलेंस रहती थी। लेकिन निदेशक ने एक एंबुलेंस को बंद कर दिया है। इससे एक ही एंबुलेंस मिली।
संस्थान प्रबंधन के सख्त नियम से मामला उलझता गया, जिससे इलाज में देर होने लगी। वहीं, जिस एंबुलेंस से अर्पण को भेजा गया, उसके सिलिंडर में ऑक्सीजन नहीं होने की बात भी कही जा रही है। वहां से बड़े अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही अर्पण की मौत हो गयी। छात्रों का आरोप है कि घटना के लिए निदेशक जिम्मेवार हैं। वहीं, छात्रों के आरोपों का खंडन करते हुए अरविंद चौबे ने कहा कि एंबुलेंस आइसीयू एवं सिलिंडर में पर्याप्त ऑक्सीजन था।