112430 कुल कोरोना केस, 63550 एक्टिव केस, 45475 रिकवर केस. यानी रिकवरी प्रतिशत कुल केस का लगभग 40%. भारत का यह आंकड़ा बेशक दुनिया के बेहतरीन कोरोना आकड़ों में से एक है. जिसमे मरीजों के सही होने का प्रतिशत काफी अच्छा है. हालाँकि देश में कोरोना के शुरुआती दिनों में यह आंकड़ा महज 4 प्रतिशत के आस पास था. तो ऐसा क्या हुआ जिससे भारत में मरीजों की रिकवरी दर पूरे विश्व में लगभग सबसे अच्छी हो गई. हालाँकि नए मरीजों के मिलने का सिलसिला लगातार जारी है. एक दिन में यह आंकड़ा 6 हज़ार मरीजों तक पहुंच चुका है.
तो किस फॉर्मूले के तहत भारत मरीजों का रिकवरी रेट बढ़ाने में सफल हुआ. जबकि अमेरिका, इटली जैसे स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस देश भी यह आंकड़ा पाने में नाकाम साबित हुए है. दरअसल भारत में कोरोना मरीजों का रिकवरी रेट बढ़ने के पीछे है सरकार की ‘नई डिस्चार्ज पॉलिसी”. परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय ने 8 मई को कोरोना मरीजों से सम्बंधित एक प्रेस रिलीज़ जारी की थी. जिसमें कोरोना संक्रमित मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने व डिस्चार्ज करने के नियमों में बदलाव किया गया था. इस नियम के जारी होने के बाद से देश में कोरोना मरीजों का रिकवरी रेट तेजी से ऊपर आया है.
इस आदेश के अनुसार अब कोरोना मरीजों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. जिनमे हल्के/कम या संदिग्ध लक्षण व गंभीर लक्षण वाले रोगी शामिल हैं. इस डिस्चार्ज पॉलिसी के मुताबिक़ हल्के या संदिग्ध लक्षण वाले मरीजों को यदि 3 दिन तक बुखार, खांसी नहीं है. साथ ही यदि उनका ऑक्सीजन लेवल सामान्य है तो 10 दिन बाद अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जायेगा. हालाँकि ऐसे मरीजों को अस्पताल से छूटने के बाद खुद को घर पर 7 दिनों तक सेल्फ आइसोलेशन में रखना होगा।
जिस देश में शराब की दुकाने खुलते ही लॉक डाउन व सोशल डिस्टैन्सिंग की धज्जियाँ उड़ने लगें. वहाँ जनता से बिना किसी सख्ती के खुद से नियमों के पालन की अपेक्षा नहीं की जा सकती. हालाँकि एक सीमा के बाद चीजे सरकार के हाथों से निकलकर जनता के हाथों में चली जाती हैं. ऐसे मरीजों की अस्पताल से छूटते वक़्त दुबारा जांच नहीं हो रही है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि इन मरीजों में अस्पताल से छूटते वक़्त हल्के लक्षण रह गये और ये लोग किसी ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में आते हैं जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है. तो क्या वे उन्हें भी संक्रमित नहीं कर देंगे ? दुनिया भर से कोरोना की जो भी जानकारिया साझा हो रही हैं. उन सबमे इम्युनिटी पर खासा जोर दिया गया है. लगभग हर रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना कमजोर इम्युनिटी वालों को आसानी से शिकंजे में ले लेता है.
पुराने सरकारी नियम के मुताबिक़ मरीज को कम से कम 14 दिन के लिए आइसोलेशन में रखा जाता था और 5 टेस्ट किये जाते थे. हालाँकि गंभीर मरीजों के केस में डिस्चार्ज का अधिकार अभी भी पूरी तरह डॉक्टर्स के ही पास है. ऐसा करना सरकार की मजबूरी भी मानी जा सकती है. क्योंकि जिस दर से देश में कोरोना मरीजों का इज़ाफ़ा हो रहा है, उसी हिसाब से मरीजों के लिए बेड भी चाहिए. ऐसे में सरकार के साथ साथ जनता की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है. सरकार के बनाये गए नियमों का पालन जनता को स्वेच्छा से ही करना होगा.
अब बात करते हैं इस डिस्चार्ज पालिसी से होने वाले नुकसान की. हालाँकि कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए आने वाले दिनों में बेडों की भी ज़रूरत पड़ेगी और संभवतः इसीलिए सरकार की ओर से जारी नई डिस्चार्ज पॉलिसी में हल्के व मॉडरेट मरीजों की जांच व भर्ती नियमों में बदलाव किया गया है. लेकिन इन नियमों के दुष्प्रभाव भी बढ़ सकते हैं. पहले भी कई जगह ऐसे मामले सामने आये हैं जहां लक्षण दिखते हुए भी लोग जांच व इलाज के लिए राजी नहीं हो रहे. ऐसे में हो सकता है जिन मरीजों को 10 दिन के बाद डिस्चार्ज किया जाये वे दुबारा लक्षण दिखने पर भी जांच के लिए सम्पर्क न करें। ऐसे में वे समाज के लिए कोरोना कैरियर का काम करेंगे.
हालाँकि लॉक डाउन के शहुरुआती 2 चरणों में सरकार ने सख्ती करके यह बता दिया कि इस महामारी से बचने के लिए क्या क्या करना है और क्या नहीं करना है. लॉक डाउन इस बिमारी का हमेशा के लिए उपचार हो नहीं सकता. इतने दिनों तक सरकार की ओर से जो तौर-तरीके बताये गए. यदि जनता उन्हें आगे भी मानती रहेगी तो इस बिमारी को फैलने से रोकने में कामयाबी मिलेगी. अब हमे अपनी अपनी जिम्मेदारी समझनी है. साथ ही समझदारी से ही आगे बढ़ना है. खुद को बचाते हुए देश, समाज को भी बचाना है. इसलिए सरकार की ओर से डिस्चार्ज पालिसी में जो बदलाव किये गए हैं, उनका अनुचित लाभ उठाने के बजाय अपनी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करें. यदि 10 दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिल भी जाती है तो दुबारा लक्षण दिखने पर तुरंत कोरोना हेल्पलाइन से संपर्क करें.
खुद भी सुरक्षित रहें, समाज को भी सुरक्षित रखें !
Data Source- www.covid19india.org
शुभम